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षष्ठ कर्म ग्रन्थ
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सब प्रकृतियों की सत्ता स्वीकार की गई है। इन ६३ प्रकृतियों में से तीर्थंकर प्रकृति को कम कर देने पर ६२ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । ६३ प्रकृतिक सत्तास्थान में से आहारक शरीर आहारक अंगोपांग, आहारक संघात और आहारक बंधन, इन चार प्रकृतियों को कम कर देने पर प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । इस ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान मैं से तीर्थंकर प्रकृति को कम कर देने पर ८ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है ।
उक्त ८८ प्रकृतिक सत्तास्थान में से नरकगति और नरकानुपूर्वी की अथवा देवगति और देवानुपूर्वी की उवलना हो जाने पर ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है अथवा नरकगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले ८० प्रकृतिक सत्तास्थान वाले जीव के नरकगति, नरकानुपूर्वी, वैकिय शरीर, वैकिय अंगोपांग, वैकिय संघात और वैक्रिय बंधन इन छह प्रकृतियों का बंध होने पर ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । इस ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान में से नरकगति, नरकानुपूर्वी और वैक्रिय चतुष्क, इन छह प्रकृतियों की उद्बलना हो जाने पर ८० प्रकृतिक सत्तास्थान होता है अथवा देवगति, देवानुपूर्वी और वैक्रिय चतुष्क इन छह प्रकृतियों की उवलना हो जाने पर ८० प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। इसमें से मनुष्यगति और मनुष्यानुपूर्वी की उद्दलना होने पर ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है ।
उक्त सात सत्तास्थान अक्षपकों की अपेक्षा कहे हैं। अब क्षपकों की अपेक्षा सत्तास्थानों को बतलाते हैं ।
अब क्षपक जीव ६३ प्रकृतियों में से नरकगति, नरकानुपूर्वी, तिर्यंचगति, तचानुपूर्वी, जातिचतुष्क (एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय जाति, श्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति), स्थावर, आतप, उद्योत, सूक्ष्म और साधारण इन तेरह प्रकृतियों का क्षय कर देते हैं तब उनके ८० प्रकू
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