Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
सहित २८ प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत नाम को मिला देने पर २६ प्रकृतिक उपवन होता है. देश के उस नाम का उदय उत्तरविक्रिया करने के समय होता है। यहाँ भी पूर्ववत् आठ भङ्ग होते हैं । इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल भङ्ग १६ हैं ।
भाषा पर्याप्ति से पर्याप्त हुए देवों के सुस्वर सहित २६ प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिला देने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी आठ भङ्ग होते हैं ।
इस प्रकार देवों के २१, २५, २७, २८, २६ और ३० प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान होते हैं तथा उनमें क्रमशः ८+६+६+१६+१६+ ८= ६४ भङ्ग होते हैं ।
अब नारकों के उदयस्थानों और उनके भङ्गों का कथन करते हैं ।
नारकों के २१, २५, २७, २८ और २६ प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान होते हैं । यहाँ ध्रुवोदया बारह प्रकृतियों के साथ नरकगति, 'नरकानुपूर्वी, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, दुभंग, अनादेय और अयशः कीर्ति इन नौ प्रकृतियों को मिला देने पर २१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । नारकों के सब अप्रशस्त प्रकृतियों का उदय है, अतः यहाँ एक भङ्ग होता है ।
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अनन्तर शरीरस्थ नारक के वैक्रिय शरीर, वैक्रिय अंगोपांग, हुंडसंस्थान, उपघात और प्रत्येक इन पाँच प्रकृतियों को मिलाने और नरकानुपूर्वी के निकाल देने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी एक भंग होता है।
शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए नारक के २५ प्रकृतिक उदयस्थान में पराघात और अप्रशस्त विहायोगति इन दो प्रकृतियों को मिला देने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका भी एक भङ्ग होता है।