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पष्ठ कर्मग्रन्थ
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और २४ प्रकृतिक उदयस्थान में एकेन्द्रिय की अपेक्षा ११ भंग प्राप्त होते हैं । अतः २४ प्रकृतिक उदयस्थान में ११ भंग होते हैं।
२५ प्रकृतिक उदयस्थान के एकेन्द्रियों की अपेक्षा ७, बैंक्रिय शरीर करने वाले तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा ८, वैक्रिय शरीर करने वाले मनुष्यों की अपेक्षा ८, आहारको संयतों की अपेक्षा १, देवों की अपेक्षा ८ और नारकों की अपेक्षा १ भंग बतला आये हैं। इन सबका जोड़ ७+++१++१=३३ होता है। अत: २५ प्रकृतिक उदयस्थान के ३३ भंग होते हैं।
२६ प्रकृतिक उदयस्थान के भंग ६०० हैं। इनमें एकेन्द्रिय की अपेक्षा १३, विकलेन्द्रियों की अपेक्षा ह, प्राकृत तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा २८८ और प्राकृत मनुष्यों की अपेक्षा २८६ भङ्ग होते हैं । इन सबका जोड़ १३+६+२८६+२८९ =६०० होता है । ये ६० भङ्ग २६ प्रकृतिक उदयस्थान के हैं।
२७ प्रकृतिक उदयस्थान के एकेन्द्रियों की अपेक्षा ६, वैक्रिय तिर्यच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा ८, वैक्रिय मनुष्यों की अपेक्षा ८, आहारक संयतों की अपेक्षा १, केवलियों की अपेक्षा १, देवों की अपेक्षा ८ और नारकों की अपेक्षा १ भङ्ग पहले बतला आये हैं । इनका कुल जोड़ ३३ होता है । अतः २७ प्रकृतिक उदयस्थान के ३३ भङ्ग होते हैं।
२८ प्रकृतिक उदयस्थान के विकलेन्द्रियों की अपेक्षा ६, प्राकृत तियं च पंचेन्द्रियों की अपेक्षा ५७६, वैक्रिय तिर्यच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा. १६, प्राकृत मनुष्यों की अपेक्षा ५७६, वैक्रिय मनुष्यों की अपेक्षा है, आहारकों की अपेक्षा २, देवों की अपेक्षा १६ और नारकों की अपेक्षा १ भङ्ग बतला आये हैं। इनका कुल जोड़ ६+५७६+१६+५७६+ ६+२+१६+१-१२०२ होता है । अत: २८ प्रकृतिक उदयस्थान के १२०२ भङ्ग होते हैं।
२६ प्रकृतिक उदयस्थान के भङ्ग १७८५ हैं। इसमें विकलेन्द्रियों