Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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साति: म...
तीस प्रकृतिक बन्धस्थान के कुल भंग ४६४१ होते हैं। क्योंकि तिर्यंचगति के योग्यं तीस प्रकृतिक बंध करने वाले के ४६०८ भंग होते हैं तथा द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और मनुष्यगति के योग्य तीस प्रकृति का बध करने वाले जीवों के आठ-आठ भंग हैं और आहारक के साथ देवगति के योग्य तीस प्रकृति का बन्ध करने वाले के एक भंग होता है। इस प्रकार उक्त भंगों को मिलाने पर तीस प्रकृतिक बन्धस्थान के कुल भंग ४६०८++८ |-+++१=४६४१ होते हैं।
इकतीस प्रकृतिक और एक प्रऋतिक बन्ध्रस्थान का एक-एक भंग होता है।
इस प्रकार से इन सब बन्धस्थानों के भंग १३६४५ होते हैं । वे इस तरह समझना चाहिये-४-२५+१६+६+६२४८ ---४६४१+१F १-१३९४५ ।
नामकर्म के बन्धस्थान और उनके कुन भंगों का विवरण पृष्ठ १५६ की तालिका में देखिये।
नामकर्म के बंधस्थानों का कथन करने के पश्चात अब उदयस्थानों को बतलाते हैं।
वीसिगवीसा चवीसगाइ एगाहिया उ इगतीसा। उदयट्ठाणाणि भवे नव अट्ट य हुंलि नामस्स ॥२६॥
१ तुलना कीजिये--- (क) अइनववीमिययीसा च उनीमे गहिन जाव इगितीसा। चउगइएसं वारस उदयट्ठाणाई नामस्स ||
-पंचसंग्रह सप्ततिका, गा० ७३ (ब) बीस इगिचउवीसं तत्तो इकितीसओ ति एयश्रियं । जदयट्ठाणा एवं णव अट्ट व होति ग्रामस्स ।।
- कर्मकांड, ५६२