Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
उसके स्थान पर उद्योत का उदय हो गया तो भी ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ यशःनीति और अयश:कीर्ति के विकल्प से दो ही भंग होते हैं। इस प्रकार तीस प्रकृतिक उदयस्थान में छह भंग होते हैं।
अनन्तर स्वर सहित ३० प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत के मिलाने पर इकतीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ सुस्वर और दुःस्वर तथा यशःकीति और अयश कीर्ति के विकल्प से चार भंग होते हैं।
इस प्रकार द्वीन्द्रिय जीवों के छह उदयस्थानों (२१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक) में क्रमशः ३+३+२+४+६+४ कुल २२ भंग होते हैं । इसी प्रकार से श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में से प्रत्येक के छह-छह उदयस्थान और उनके भंग घटित कर लेना चाहिये । अर्थात् द्वीन्द्रिय की तरह ही त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के भी प्रकृतिक उदयस्थान तथा उनमें से प्रत्येक के भंग समझना चाहिये, लेकिन इतनी विशेषता कर लेना चाहिये कि द्वीन्द्रिय जाति के स्थान पर त्रीन्द्रिय के लिये त्रीन्द्रिय जाति और चतुरिन्द्रिय के लिये चतुरिन्द्रिय जाति का उल्लेख कर लेवें।
कुल मिलाकर विकलत्रिकों के ६६ भंग होते हैं । कहा भी है
___सिंग तिग दुग बऊ छ चउ विगसाप असष्टि होर सिहं पि । अर्थात् द्वीन्द्रिय आदि में से प्रत्येक के २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक ये छह उदयस्थान हैं और उनके क्रमश: ३, ३, २, ४, ६ और ४ भंग होते हैं, जो मिलकर २२ हैं और तीनों के मिलाकर कुल २२४३=६६ भंग होते हैं ।
अब तिर्यच पंचेन्द्रियों के उदयस्थानों को बतलाते हैं । तिर्यंच पंचेन्द्रियों के २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान होते हैं।