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सप्ततिका प्रकरण
इस प्रकार से तिर्यचों के एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के भेदों में उदयस्थान और उनके भङ्गों को बतलाने के पश्चात् अब मनुष्यगति की अपेक्षा उदयस्थान व भङ्गों का काथन करते हैं।
मनुष्यों के पदास्थानों का कथन सामान्य, वक्रियशरीर करने बाले, आहारक शरीर करने वाले और केवलज्ञानी की अपेक्षा अलगअलग किया जा रहा है ।।
सामान्य मनुष्य-सामान्य मनुष्यों के २५, २६, २८, २६ और ३० प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान होते हैं। ये सब उदयम्यान तियं व पंचेन्द्रियों के पूर्व में जिस प्रकार कथन कर आये हैं, उसी प्रकार मनुष्यों को भी समझना चाहिये, किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यों के नियंचगति, तिर्य चानुपूर्वी के स्थान पर मनुष्यगति और मनुष्यानुपूर्वी का उदय कहना चाहिये और २९ व ३० प्रकृतिक उदयस्थान उद्योत रहित कहना चाहिये, क्योंकि वैक्रिय और आहारक संयतों को छोड़कर शेष मनुष्यों के उद्योत का उदय नहीं होता है। इसलिय तियंचों के जो २६ प्रकृतिक उदयस्यान में ११५२ भङ्ग कहे उनके स्थान पर मनुष्यों के कुल ५७६ भङ्ग होते हैं। इसी प्रकार तिर्यचों के जो ३० प्रकृतिक उदयस्थान में १७२८ भङ्ग कहे, उनके स्थान पर मनुष्यों के कुल ११५२ भङ्ग प्राप्त होंगे।
इस प्रकार सामान्य मनुष्यों के पूर्वोक्त पाँच उदयस्थानों के कुल E+२ +५७६+५७६+ ११५२= २६०२ भङ्ग होते हैं।
पंक्रिय शरीर करने वाले मनुष्य-वैक्रिय शरीर को करने वाले मनुष्यों के २५, २७, २८, २६ और ३० प्रकृतिका, ये पाँच उदयस्थान होते हैं। बारह ध्रुवोदय प्रकृतियों के साथ मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, वक्रिय शरीर, वक्रिय अंगोपांग, समचतुरस्त्र, संस्थान, उपघात, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, सुभग और दुभंग में से कोई एक, आदेय और अनादेय में से कोई एक तथा यशःकीति और अयश कीति में से कोई