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सप्ततिका प्रकरण
केवलज्ञानी- केवली जीवों के २०, २१, २६, २७, १८, २९, ३०, ३१, ६ और ८ प्रकृतिक ये दस उदयस्थान होते हैं ।
नामकर्म की बारह ध्रुवो दया प्रकृतियों में मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, स, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशः कीर्ति इन आठ प्रकृतियों के मिलाने से २० प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका एक भङ्ग होता है । यह उदयस्थान समुद्घातगत अतीर्थं केवली के काम काय योग के समय होता है ।
उक्त २० प्रकृतिक उदयस्थान में तीर्थकर प्रकृति को मिलाने पर २१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह उदयस्थान समुद्घातगत तीर्थकर केवली के कार्मणकाययोग के समय होता है। इसका भी एक भङ्ग है।
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२० प्रकृतिका उदयस्थान में औदारिक शरीर, छह संस्थानों में से कोई एक संस्थान, औदारिक अंगोपांग, वज्रऋषभनाराच संहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियों के मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह अतीर्थकर केवली के औदारिकमिश्र काययोग के समय होता है । इसके छह संस्थानों की अपेक्षा छह भङ्ग होते हैं, किन्तु वे सामान्य मनुष्यों के उदयस्थानों में भी सम्भव होने से उनकी पृथक से गणना नहीं की है ।
तेइतिगुणतिरितखे सुज्जोवो बादरे
पुणे |
इसी से कर्मकांड में आहारक संयतों के २५, २७, २० और २६ प्रकृतिक चार उदयस्थान बतलाये हैं। इनमें २४ और २७ प्रकृतिक उदयस्थान तो सप्ततिका प्रकरण के अनुसार जानना चाहिये। शेष रहे २८ और २६ प्रकृतिक उदयस्थान, इनमें से २६ प्रकृतिक उदयस्थान उच्छवास प्रकृति के उदय से और २६ प्रकृतिक उदयस्थान सुस्वर प्रकृतिक के उदय से होता है। अर्थात् २७ प्रकृतिक उदयस्थान में उच्छवास प्रकृति के मिलाने से २८ प्रकृतिक उदयस्थान और इस २८ प्रकृतिक उदयस्थान में सुस्वर प्रकृति के मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है ।