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सप्ततिका प्रकरण
के एक अयशः कीर्ति का उदय होता है, अतः एक भंग हुआ तथा पर्याप्त के यशः कीर्ति और अयशःकीर्ति के विकल्प से इन दोनों का उदय होता है अतः दी भंग हुए। इस प्रकार इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान में कुल तीन भंग हुए ।
इस इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान में औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, इंडसंस्थान सेवार्तसंहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियों को मिलाने और तिर्यचानुपूर्वी को कम करने पर शरीरस्थ होन्द्रिय जीव के छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान के भंगों के समान तीन भंग होते हैं।
छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान में शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए द्वीन्द्रिय जीव के अप्रशस्त विहायोगति और पराधात इन दो प्रकृतियों के मिला देने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ यशः कीर्ति और अयशः कीर्ति की अपेक्षा दो भंग होते हैं। इसके अपर्याप्त नाम का उदय न होने से उसकी अपेक्षा भंग नहीं कहे हैं ।
अनन्तर श्वासोच्छ् वास पर्याप्ति से पर्याप्त होने पर पूर्वोक्त २८ प्रकृतिक उदयस्थान में उच्छवास प्रकृतिक के मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी यशःकीर्ति और अयशःकीति की अपेक्षा दो भंग होते हैं अथवा शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उद्योत का उदय होने पर उच्छवास के बिना २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी यशः कीर्ति और अयशःकोति की अपेक्षा दो भंग हो जाते है । इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान में कुल चार भंग होते हैं ।
भाषा पर्याप्त से पर्याप्त हुए जीव के उच्छवास सहित २६ प्रकृतियों में सुस्वर और दुःस्वर इनमें से कोई एक के मिला देने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ पर सुस्वर और दुःस्वर तथा यश:कीर्ति और अयश: कीर्ति के विकल्प से चार भंग होते हैं अथवा प्राणापान पर्याप्त से पर्याप्त हुए जोव के स्वर का उदय न होकर यदि