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सप्ततिका प्रकरण
कीति और अयश:कोति के निमित्त से चार भंग होते हैं सथा सूक्ष्म के प्रत्येक और साधारण की अपेक्षा अयशःकीति के साथ दो भंग होते हैं । जिससे छह भंग तो ये हुए तथा वैक्रिय शरीर को करने वाला बादर वायुकायिक जीव जब शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हो जाता है, तब उसके २४ प्रकृतियों में पराधात के मिलाने पर पच्चीस प्रकृतियों का उदय होता है। इसलिये एका भंग इसका होता है। इस प्रकार पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान में सव मिलकर सात भंग होते हैं। ___ अनन्तर प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के पूर्वोक्त २५ प्रकृतियों में उच्छवास के मिलाने पर छब्बीस प्रकृतिका उदयस्थान होता है । यहां भी पूर्व के समान छह भंग होते हैं । अथवा शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जिस जीव के उच्छवास का उदय न होकर आतप और उद्योल में से किसी एक का उदय होता है, उसके छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी छह भंग होते हैं। वे इस प्रकार हैं-आतप और उद्योन का उदय बादर के ही होता है, मूक्ष्म के नहीं, अत: इनमें से उद्योन सहित बादर के प्रत्येक और साधारण तथा यश कीर्ति और अयश:कीति, इनकी अपेक्षा चार भंग हुए तथा आतप सहित प्रत्येक के यशःकीति और अयश कीर्ति, इनको अपेक्षा दो भंग हुए। इस प्रकार कूल छह भंग हुए। आसप का उदय लादर पृथ्वीकायिक के ही होता है, किन्तु उद्योत का उदय वनस्पतिकायिक के भी होता है और बादर वायुकायिक के वैकिय शरीर को करते समय उच्छ वास पर्याप्ति से पर्याप्त होने पर २५ प्रकृतियों में उच्छ् वास को मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । अत: यह एक भंग हुआ। इतनी विशेषता समझना चाहिये कि अग्नि कायिक और वायुकायिक जीवों के आतप, उद्योत और यशःक्रीति का उदय नहीं होता है । इस प्रकार छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान में कुल १३ भंग होते हैं।