________________
११६
सप्ततिका प्रकरण
के साथ क्षपकणि पर चढ़ता है तो वह जीव पहले नपुंसक वेद का क्षय करता है, तदनन्तर अन्तर्मुहूर्त काल में स्त्रोवेद का क्षय करता है, फिर पुरुषवेद और हास्यादि षट्क का एक साथ क्षय होता है । किन्तु इसके भी स्त्रीवेद की क्षपणा के समय पुरुषवेद का बंद हो जाता है। इस प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसक वेद के उदय से क्षपकश्रेणि पर बढ़े हुए जीव के या तो स्त्रीवेद की क्षपया के अन्तिम समय में या स्त्रीवेद और नपुंसकवेद की क्षपणा के अंतिम समय में पुरुषवेद का अन्धविच्छेद हो जाता है, जिससे इस जीव के चार प्रकृतिक बंधस्थान में वेद के उदय के बिना एक प्रकृति का उदय रहते ग्यारह प्रकृतिक सत्तास्थान प्राप्त होता है तथा यह जीव पुरुषवेद और हास्यादि षटुक का क्षय एक साथ करता है। अतः इसके पाँच प्रकृतिक सत्तास्थान प्राप्त न होकर चार प्रकृतिक सत्तास्थान प्राप्त होता है। किन्तु जो जीव पुरुषवेद के उदय से क्षपकश्रेणि पर चढ़ता है, उसके छह नोकषायों के क्षय होने के समय ही पुरुषवेद का बंधविच्छेद होता है, जिससे उसके चार प्रकृतिक बंषस्थान में ग्यारह प्रकृतिक ससास्थान नहीं होता किन्तु पांच प्रकृतिकं सत्तास्थान प्राप्त होता है। इसके यह सत्तास्थान दो समय कम दो आवली काल तक रहकर, अनन्तर अन्तर्मुहूर्त काल तक चार प्रकृतिक सत्तास्थान प्राप्त होता है ।
1
१ कषायप्राभूत की चूर्णि में पांच प्रकृतिक सत्तास्थान का जभ्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार का काल एक समय कम वो आयलो प्रमाण बतलाया है
"पंच वित्तिओ के विचिरं कालादो ? जहष्णुक्कस्त्रेण दो मावलियाओ समयुगाओ ।।”