________________
૧
सप्ततिका प्रकरण
अब मोहनीय कर्म के कथन का उपसंहार करके नामकर्म को कहने की प्रतिज्ञा करते हैं ।
दसनवपन्नरसाई बंधोवसन्तपयरिठाणाई । भणियाई मोहणिज्जे इत्तो नामं परं वोच्खं ॥ २३॥' घोय
माण्वार्थ -- वसन वपश्नरसाई- दस, नौ और पन्द्रह, सन्तपयठाणा, उदय और सत्ता प्रकृतियों के स्थान, भनिया कहे, मोहणिजे मोहनीय कर्म के, इसो - इससे, नाम-नामकर्म के परं आगे वोच्छं कहते हैं ।
गार्थ - मोहनीय कर्म के बंध, उदय और सत्ता प्रकृतियों के स्थान क्रमशः दस, नौ और पन्द्रह कहे। अब आगे नामकर्म का कथन करते हैं।
विवीधार्थ - मोहनीय कर्म के बन्ध, उदय और सत्तास्थानों के कथन का उपसंहार करते हुए गाथा में संकेत किया गया है कि मोहनीय कर्म के बंधस्थानं दस, उदयस्थान नो और सत्तास्थान पन्द्रह होते हैं। जिनमें और जिनके संबंध भंगों का कथन किया जा चुका है । अब आगे की गाथा से नामकर्म के बंध, उदय और सत्ता के संवेध भंगों का कथन प्रारम्भ करते हैं ।
गामकर्म
सबसे पहले नामकर्म के बंधस्थानों का निर्देश करते हैं-तेवीस पण्णवोसा छठवीसा अट्टवीस गुणतोसा । तीसे गतीस मेक्कं बंधद्वाणाणि
नामस्स ||२४||
तुलना कीजिए—
वणवण्णरसाई गंधोदय सत्तपयडिठाणाणि । भणिदाणि मोहणिजे एती पामं परं वोच्छं ॥ २ तुलना कीजिए --
गौ० कर्मकांड ५१८
(क) जामस्त कम्मस्स अट्ठ द्वाणाणि एक्कसीसाए तीसाए एगुणती साए अट्टवीसार छब्बीसाए पणुवीसाए तेबीसाए एकिकस्से द्वाणं चेदि । जीव० ० ० ० ६०