Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
वाले भंग संभव नहीं हैं। अब रहे स्थिर अस्थिर और शुभ-अशुभ, ये दो युगल । सो इन का विकल्प से बंध संभव है यानी स्थिर के साथ एक बार शुभ का, एक बार अशुभ का तथा इसी प्रकार अस्थिर के साथ भी एक बार शुभ ना तथा एक बार अशुभ का धंध संभव है, अत. यहाँ कुल चार भंग होते हैं । जन कोई जीत्र झा और पर्याप्त का बंध करता है, लब उपके यवःवीति और अयश:ोति इनमें से एक अयशःकीत काही बंध होता है किन्तु प्रत्येक और साधारण में से किसी एक का, स्थिर और अस्थिर में से किसी एक का तथा शुभ और अशुभ में से किसी एक का बंध होने के कारण आठ भंग होते हैं। इस प्रकार पच्चीस प्रकृतिक बंधस्थान में ८-४+८=२० भंग होते हैं।
छब्बीस प्रकृतियों के समुदाय को छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थान कहते हैं। यह बंधस्थान पर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय के योग्य प्रकृ. तियों का आतप और उद्योत में से किसी एक प्रकृति के साथ बंध करने वाले मिश्या दृष्टि निर्यच, गनप्य और देव को होता है । छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थान में ग्रहण की गई प्रतियां इस प्रकार हैं-नियंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, एकेन्द्रिय गाति, औदारिक शरीर, तेजस, कार्मण शरीर, हुंडसंस्थान, बर्णचनुण., अगृहलध, पराघात, उपघात, उन्छ - वास, स्थावर, आताप और उद्यान में से कोई एत्रा, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर और अस्थिर में में कोई एक, गृभ और अशुभ में से कोई एक, दुभंग, अनादेय, यश कीनि और अयाः कीति में कोई एक तथा निर्माण ।
इस बंधस्थान में सोलह भंग होते हैं। ये भंग आतप और उद्योल में से किसी एक प्रकृति का, स्थिर और अस्थिर में से किसी एक का, शुभ और अशुभ में से किसी एक का तथा यशःकीति और अयश कीर्ति में से किसी एक का बंध होने के कारण बनते हैं । आतप और उद्योत