Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मपन्य
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के साथ सुक्ष्म और साधारण का बंध नहीं होता है । इसलिये यहाँ सूक्ष्म और साधारण के निमित्त से प्राप्त होने वाले भंग नहीं कहे गये हैं।
इस प्रकार एकेन्द्रिय प्रायोग्य २३, २५ और २६ प्रकृतिक, इन तीन 'बंधस्थानों के कुन्न भंग ४+२०.१६ =४० होते हैं। कहा भी है
चत्तारि बीस सोलस भंगा एगिदियाण चत्ताला । अर्थात् . एकेन्द्रिय सम्बन्धी २३ प्रकृतिक बंधस्थान के चार, २५ प्रकृतिक बंधस्थान के बीस और २६ प्रकृतिक बंधस्थान के सोलह भंग होते हैं । ये सब मिलकर चालीरा हो जाते हैं ।
एकेन्द्रिय प्रायोग्य बंधस्थानों का कथन करने के अनन्तर हीन्द्रियों के बंधस्थानों को बतलाते हैं।
द्वीन्द्रिय के योग्य प्रकृतियों को बांधने वाले जीव के २५, २६ और ३० प्रकृतिक, ये तीन बंधस्थान होते हैं। ____ जिनका विवरण इस प्रकार है---पचीस प्रकृतियों के समुदाय रूप बंधस्थान को पच्चीस प्रकृतिक बंधस्थान कहते हैं। इस स्थान के बंधक अपर्याप्त वीन्द्रिय के योग्य प्रकृतियों को बाँधने वाले मिथ्यावृष्टि मनुष्य और तियं च होते हैं। पच्चीस प्रकृतियों के बंधस्थान की प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं___ तिथंचगति, तिथंचानुमूर्ती, द्वीन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, हुंइसंस्थान, सेवातं संहनन, औदारिक अंगोपांम, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपधात, बस, बादर, अपर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश:कौति और निर्माण । यहाँ अपर्याप्त प्रकृति के साथ केवल अशुभ प्रकृतियों का ही बंध होता है शुभ प्रकृतियों का नहीं, जिससे एक ही भंग होता है । १ द्वीन्द्रियप्रायोग्य बघ्नतो बंधस्थानानि त्रीणि, तद्यथा---पंचविंशतिः एकोन त्रिशन विशम् ।
– सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७