Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
__ .शमा-सेवीस-तेईस, पणवीसा-पच्चीस, छब्बीसा--- छब्बीस, मट्ठबीस-अट्ठाईस, गुगतीसा- उनसीस, तीसेगतीसंतीस, इकतीस, एक-एक, बंबाणाणि-बंधस्थान, पामस्सनामकर्म के।
गायार्थ -नामकर्म क तेईस, पच्चास, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस और एक प्रकृतिक, ये आठ बंधस्थान होते हैं। विशेषार्ष-गाथा में नामकर्म के आठ बंधस्थान होने के साथ-साथ वे स्थान कितने प्रकृतिक संख्या वाले हैं, इसका संकेत किया गया है कि वे बंधस्थान १. तेईस प्रकृतिक, २. पच्चीस प्रकृतिक, ३. छब्बीस प्रकृतिक, ४. अट्ठाईस प्रकृतिक, ५. उनतीस प्रकृतिक, ६. तीस प्रकतिक, ७. इकतीस प्रकृतिक और ८. एक प्रकृतिक हैं।
वैसे तो नामकर्म की उत्तर प्रकृतियाँ तिरानवे हैं। किन्तु इन सबका एक साथ किसी भी जीव को बंध नहीं होता है, अतएव उनमें से कितनी प्रकृतियों का एक साथ बंध होता है, इसका विचार आठ बंधस्थानों के द्वारा किया गया है। इनमें भी कोई तिर्यंचगति के, कोई मनुष्यगति के, कोई देवगति के और कोई नरकगति के योग्य बंधस्थान हैं और इसमें भी इनके अनेक अवान्तर भेद हो जाते हैं। जिससे इन अवान्तर भेदों के साथ उनका विचार यहाँ करते हैं।
तियंचगति में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव होते हैं।
() तेवीसा पमुषीसा वीसा अट्टपीस गुणतीसा । तीसेगतीस एमो घटाणा नामेट ॥
-पंच सप्ततिका, ना ५५ (म) सेवीसं पणवीसं मीसं अट्टपीसमुगतीसं । तीसेक्कसीसमेवं एरको बंधो दुसे हिम्मि ।
-पोकर्मकांड पा० ५२१