Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण पांच प्रकृतिक बंधस्थान उपशमणि और क्षपकणि में अनिवृत्तिबादर जीवों के पुरुषवेद के बंधकाल तक होता है और पुरुषवेद के बंध के समय तक यह नोकषायों की सत्ता पाई जाती है, अतः पाँच प्रकृतिक बंघस्थान में पाप आदि सत्तास्थान नहीं पाये जाते हैं। अब रहे शेष सत्तास्थान' सो उपशमणि की अपेक्षा यहाँ २८, २४ और २१ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान पाये जाते हैं। २१ और २४ प्रकृतिक सत्तास्थान तो उपशम सम्यग्दृष्टि को उपशमश्रेणि में और २१ प्रकृतिक सत्तास्थान क्षायिक सम्यग्दृष्टि को उपशमप्रेणि में पाया जाता है। क्षपकणि में भी जब तक आठ कषायों का क्षय नहीं होता तब तक २१ प्रकृतिक सत्तास्थान पाया जाता है। अर्थात् उपशमणि की अपेक्षा २८, २४ और २१ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं । किन इतनी विशेषता है कि २८ और २५ प्रकृतिक सत्तास्थान तो उपशम सम्यग्दृष्टि जीव को ही उपशमश्रेणि में होते हैं, किन्तु २१ प्रकृतिक सत्तास्थान क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव को उपशमश्रेणि में भी होता है और क्षपकणि में भी आठ कषायों के क्षय न होने तक पाया जाता है।'
१ पंचादीनि तु सत्तास्थानानि पंचविषवन्धे न प्राप्यन्ते, यत: पंचविषबन्धः
पुरुषवेदे बध्यमाने मवति, सायच्च पुरुषवेदस्य बंघस्सायत् षड़ नोकषायाः सन्त एवेति ।
-सप्ततिका प्रकरण टोकर, पृ० १५४ २ तत्राष्टाविंशतिः प्रविशतिश्चौपशमिकसम्यग्रष्टेरुपरामण्याम् । एकविक्षतिरुपशमण्यां शायिकसम्पग्हण्टेः।
--सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १५४ ३ सपकण्या पुनरष्टो कषाया पावद न श्रीयन्त्र तावदेकविंशतिः।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७४