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सप्ततिका प्रकरण
में ही उत्पन्न होता है और उनके देश विरति नहीं होती है और देशविरति के न होने से उनके तेरह प्रकृतिक बंषस्थान नहीं पाया जाता है । परन्तु यहाँ तेरह प्रकृतिक बंषस्थान में सत्तास्थानों का विचार किया जा रहा है । अत: ऊपर जो यह कहा गया है कि तियंत्रों के २३ आदि प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं होते हैं, वह १३ प्रकृतिक बंधस्थान की अपेक्षा से ठीक ही कहा गया है । चूणि में भी कहा है--
एगवीसा तिरिसने संजयाऽसंजएसु न संभवइ । कहं ?. भग्गा-संजबासा एसु तिरिक्सेसु लागसम्मट्ठिी ME असलेनमासाउएषु उमजेषमा, तस्स रेसविर मस्थि।
अर्थात्-तिर्यंच संयतासंयतों के २१ प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं होता, क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव संख्यात वर्ष की आयु वाले तियंचों में उत्पन्न नहीं होता है । असंख्यात वर्ष की आयु वाले तियंचों में उत्पन्न होता है, किन्तु वहाँ उनके देशविरति नहीं होती है ।
इस प्रकार से तिर्यंचों की अपेक्षा विचार करने के बाद अब मनुष्यों को अपेक्षा विचार करते हैं। ___ जो देशविरत मनुष्य हैं, उनके पांच प्रकृतिक उदयस्थान के रहते २८, २४ और २१ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं। छह प्रकृतिक और सात प्रकृतिक उदयस्थान के रहते प्रत्येक में २८, २४, २३, २२ और २१ प्रकृतिक, ये पांच सत्तास्थान होते हैं । आठ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते २८, २४, २३ और २२ प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं। उदयस्थानगत प्रकृतियों को ध्यान में रखने से इनके कारणों का निश्चय सुगमतापूर्वक हो जाता है। अर्थात् जैसे अविरत सम्य. म्हष्टि गुणस्थान में कथन किया गया है, वैसे ही यहाँ भी समझ लेना चाहिमे । अत: अलग से काथन न करके किस उदयस्थान में कितने सत्तास्थान होते हैं, इसका सिर्फ संकेतमात्र किया गया है ।