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सप्ततिका प्रकरण
भंगों का कथन करने के अनन्तर अब आगे सत्तास्थानों के साथ बन्धस्थानों का कथन करते हैं।
तिनव य बाबीसे इमबीसे अटवीस सत्सरसे । छ ज्वेव तेरनवबंधगेसु पंचेव ठाणाई॥२१॥ पंचविहवउविहेसु छ छक्क सेसेसु जाण पंचेव । पत्तेयं पत्तेयं चत्तारि य बंधवोच्छए ॥२२॥
शम्वार्ष-तिष-तीन सत्तास्थान, य-और, बावीसेबाईस प्रकृतिक बन्धस्थान में, इगवीसे-कीस प्रकृतिक बन्धस्थान में, अटुवोस-अट्ठाईस का सत्तास्थान, ससरसे---सत्रह के बन्धस्थान में, छज्य--छह का, तेरनवबंधगेसु-तेरह और नौ प्रकृतिक बन्धस्थान में, पंथेव-पाच ही, ठाणाणि-सत्तास्थान ।
पंचषिह-पांच प्रकृतिक बन्धस्यान में, बबिहेसं... पार प्रकृतिक बन्धस्थान में, छक्क-छह-छह, सेसेस-बाकी के बन्धस्थानों में, जाण-जानो, पंचेच-पांच ही, पत्तेय-पत्तेम-प्रत्येक में, (एक-एक में), पत्तार-चार, 4-और, संभवोच्छेए-बन्ध का विच्छेद होने पर भी।
गाया--बाईस प्रकृतिक बन्धस्थान में तीन, इक्कीस प्रकृतिक बन्धस्थान में अट्ठाईस प्रकृति वाला एक, सत्रह प्रकृतिक बन्धस्थान में छह, तेरह प्रकृतिक और नौ प्रकृतिक बन्धस्थान में पांच-पांच सत्तास्थान होते हैं 1
पाँच प्रकृतिक और चार प्रकृतिक बन्धस्थानों में छह-छह सत्तास्थान तथा शेष रहे बंधस्थानों में से प्रत्येक के पांचपांच सत्तास्थान जानना चाहिये और बन्ध का विच्छेद हो जाने पर चार सत्तास्थान होते हैं।
विशेषार्थ-पहले १५, १६ और १७वीं गाथा मैं मोहनीय कर्म के बन्धस्थानों और उदयस्थानों के परस्पर संवेष का कथन कर आये हैं ।