Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
## Chapter 72
After describing the types of *bhangas* (breakages), we now describe the *satta-sthana* (places of existence) along with the *bandha-sthana* (places of bondage).
There are **twenty-two** *bandha-sthana* with **three** *satta-sthana*, **twenty-one** *bandha-sthana* with **twenty-eight** *satta-sthana*, **eighteen** *bandha-sthana* with **six** *satta-sthana*, **seventeen** *bandha-sthana* with **six** *satta-sthana*, **thirteen** and **nine** *bandha-sthana* with **five** *satta-sthana* each.
In **five** *bandha-sthana*, there are **six** *satta-sthana* each, in **four** *bandha-sthana*, there are **six** *satta-sthana* each, and in the remaining *bandha-sthana*, there are **five** *satta-sthana* each. Know that even after the *bandha* (bondage) is broken, there are **four** *satta-sthana*.
**In summary:**
* There are three *satta-sthana* in twenty-two *bandha-sthana*.
* There are twenty-eight *satta-sthana* in twenty-one *bandha-sthana*.
* There are six *satta-sthana* in eighteen *bandha-sthana*.
* There are six *satta-sthana* in seventeen *bandha-sthana*.
* There are five *satta-sthana* each in thirteen and nine *bandha-sthana*.
* There are six *satta-sthana* each in five and four *bandha-sthana*.
* There are five *satta-sthana* each in the remaining *bandha-sthana*.
* There are four *satta-sthana* after the *bandha* is broken.
**Note:** In the previous verses (15, 16, and 17), we discussed the relationship between the *bandha-sthana* and *udaya-sthana* (places of arising) of *mohaniya karma* (karma that causes delusion).
________________
१२२
सप्ततिका प्रकरण
भंगों का कथन करने के अनन्तर अब आगे सत्तास्थानों के साथ बन्धस्थानों का कथन करते हैं।
तिनव य बाबीसे इमबीसे अटवीस सत्सरसे । छ ज्वेव तेरनवबंधगेसु पंचेव ठाणाई॥२१॥ पंचविहवउविहेसु छ छक्क सेसेसु जाण पंचेव । पत्तेयं पत्तेयं चत्तारि य बंधवोच्छए ॥२२॥
शम्वार्ष-तिष-तीन सत्तास्थान, य-और, बावीसेबाईस प्रकृतिक बन्धस्थान में, इगवीसे-कीस प्रकृतिक बन्धस्थान में, अटुवोस-अट्ठाईस का सत्तास्थान, ससरसे---सत्रह के बन्धस्थान में, छज्य--छह का, तेरनवबंधगेसु-तेरह और नौ प्रकृतिक बन्धस्थान में, पंथेव-पाच ही, ठाणाणि-सत्तास्थान ।
पंचषिह-पांच प्रकृतिक बन्धस्यान में, बबिहेसं... पार प्रकृतिक बन्धस्थान में, छक्क-छह-छह, सेसेस-बाकी के बन्धस्थानों में, जाण-जानो, पंचेच-पांच ही, पत्तेय-पत्तेम-प्रत्येक में, (एक-एक में), पत्तार-चार, 4-और, संभवोच्छेए-बन्ध का विच्छेद होने पर भी।
गाया--बाईस प्रकृतिक बन्धस्थान में तीन, इक्कीस प्रकृतिक बन्धस्थान में अट्ठाईस प्रकृति वाला एक, सत्रह प्रकृतिक बन्धस्थान में छह, तेरह प्रकृतिक और नौ प्रकृतिक बन्धस्थान में पांच-पांच सत्तास्थान होते हैं 1
पाँच प्रकृतिक और चार प्रकृतिक बन्धस्थानों में छह-छह सत्तास्थान तथा शेष रहे बंधस्थानों में से प्रत्येक के पांचपांच सत्तास्थान जानना चाहिये और बन्ध का विच्छेद हो जाने पर चार सत्तास्थान होते हैं।
विशेषार्थ-पहले १५, १६ और १७वीं गाथा मैं मोहनीय कर्म के बन्धस्थानों और उदयस्थानों के परस्पर संवेष का कथन कर आये हैं ।