________________
**
सप्ततिका प्रकरण
में से किसी एक को मिलाने से तीसरा आठ प्रकृतियों का उदय, इस तरह आठ प्रकृतिक उदयस्थान के तीन प्रकार समझना चाहिए । अतः इन भंगों की तीन चौवोसियाँ होती हैं । वे इस प्रकार हैं
--
पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के उदय में भय का उदय मिलाने पर आठ प्रकृतियों के उदय के साथ भंगों की पहली चौवीसी हुई । पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के उदय में जुगुप्सा का उदय मिलाने पर आठ के उदय के साथ भंगों की दूसरी चौबीसी तथा पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के उदय में अनन्तानुबंधी क्रोधादि में से किसी एक प्रकृति के उदय को मिलाने पर आठ के उदय के साथ भंगों की तीसरी चौबीसी प्राप्त होती है । इस प्रकार आठ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते भंगों की तीन चौबीसी होती हैं।
सात प्रकृतिक उदयस्थान में और भय व जुगुप्सा के उदय से प्राप्त होने वाले आठ प्रकृतिक उदयस्थानों में अनन्तानुवन्धी कषाय चतुष्क को ग्रहण न करने तथा बन्धावलि के बाद ही अनन्तानुबन्धी के उदय को मानने के सम्बन्ध में जिज्ञासाओं का समाधान करते हैं । उक्त जिज्ञासाओं सम्बन्धी आचार्य मलयगिरि कृत टीका का अंश इस प्रकार है-
"मनु मिथ्यादृष्टेरवश्यमनन्सानुबन्धिनामुदयः सम्भवति तत् कथमिह मिध्यादृष्टिः सप्तोदये अष्टोबये वा कस्मिरिदन्तानुबन्ध्युदयरहितः प्रोक्तः ? उच्यते--इह सम्यगृष्टिना सता केनचित् प्रथमतोऽनन्तानुबन्धिनो विसंयोजिताः, एसा च स विश्रात्तो न मिध्यात्वाविक्षयाथ उद्युक्तवाम् तथाविधसामन्यभावात् ततः कालान्तरे मिथ्यात्वं गतः सन् मिध्यात्वरमयती सूयोऽप्यनसानुबन्धिनो बध्नाति ततोबरपालिका यावत् नाथाप्यतिक्रामति तावत् तेषामुवयो न भवति, बन्धावलिकायां स्थतिक्रान्तायां भवेदिति ।
१ सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६५