________________
षष्ठ कर्मग्रन्थ चौबीसी होती है तथा चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक बंधस्थान के तथा अबन्ध के समय एक प्रकृतिक उदयस्थान के क्रमश: चार, तीन, दो, एक पर एक गंगोरे हैं। इनका होड़ ग्यारह है। अत: एक प्रकृतिक उदयस्थान के कुल ग्यारह भंग होते हैं। ____ इस प्रकार से गाथा में मोहनीय कर्म के सब उदयस्थानों में भंगों की चौवीसी और फुटकर मंगों को स्पष्ट किया गया है।
सप्ततिका नामक षष्ठ कर्मग्रन्थ के टबे में इस गाथा का चौथा चरण दो प्रकार से निर्दिष्ट किया गया है। स्वमत से 'चार गिकिमि इस्कारा' और मतान्तर से 'बबीस कुगिस्कमिकारा' निर्दिष्ट किया है। प्रथम पाठ के अनुसार स्वमत से दो प्रकृतिक उदयस्थान में बारह भंग और दूसरे पाठ के अनुसार मतान्तर से दो प्रकृतिक उदयस्थान में चौबीस भंग प्राप्त होते हैं। आचार्य मलयगिरि ने अपनी टीका में इसी अभिप्राय की पुष्टि इस प्रकार की है
"द्विकोदये 'चतुर्विशतिरेका भंगकानाम्, एतश्च मतान्तरेणोक्तम्, अन्यथा स्वमते प्रावशेष भंगा बेवितम्याः।" ____ अर्थात् दो प्रकृतिक उदयस्थान में चौबीस भंग होते हैं। सो यह कथन अन्य आचार्यों के अभिप्रायानुसार किया गया है । स्वमत से तो दो प्रकृतिक उदयस्थान में बारह ही भंग होते हैं।
यहाँ गाथा १६ में पांच प्रकृतिक बंधस्थान के समय दो प्रकृतिक उदयस्थान और गाथा १७ में चार प्रकृतिक बंधस्थान के समय एक प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया है। इसमें जो स्वमत से बारह और मतान्तर से चौबीस भंगों का निर्देश किया है, उसकी पुष्टि होती है। पंचसंग्रह सप्ततिका प्रकरण और गो० कर्मकांड में भी इन मतभेदों का निर्देश किया गया है।
बंधस्थान उदयस्थानों के संवैध भंगों का विवरण इस प्रकार जानना चाहिये