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सप्ततिका प्रकरण
उक्त नौसौ पंचानव भंगों में से यथासंभव किसी न किसी एक भंग से मोहित होना कहा गया है। ___ मोहनीयकर्म की मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी काध, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, प्रत्यास्थानावरण क्रोध आदि प्रत्येक प्रकृति को पद कहते हैं और उनके समुदाय का नाम पदवृन्द है। इसी का दूसरा नाम प्रकृतिविकल्प भी है । अर्थात् दस प्रकृतिक आदि उदयस्थानों में जितनी प्रकृतियों का ग्रहण किया गया है, वे सब पद हैं और उनके भेद से जितने भंग होंगे, वे सब पदवृन्द या प्रकृतिविकल्प कहलाते हैं । यहाँ उनके कुल भेद ६९७१ बतलाये हैं। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
दस प्रकृतिक उदयस्थान एक है, अतः उसकी दस प्रकृतियां हुई। नौ प्रकृतिक उदयस्थान छह हैं अत: उनकी ६४६--५४ प्रकृतियाँ हुई 1 आठ प्रकृतिक उदयस्थान म्यारह हैं अत: उनकी अठासी प्रकृतियाँ हुई । सात प्रकृतिक उदयस्थान दस हैं अत: उनको सत्तर प्रकृतियाँ हुई । छह प्रकृतिक उदयस्थान सात हैं अतः उनकी बयालीस प्रकृतियाँ हुई। पांच प्रकृतिक उदयस्थान चार हैं अत: उनकी बीस प्रकृतियाँ हुई । चार प्रकृतिक उदयस्थान के एक होने से उसकी चार प्रकृत्तियाँ हुई और दो प्रकृतिक उदयस्थान एक है अत: उसकी दो प्रकृतियाँ हुईं। इन सब प्रकृतियों को मिलाने पर १० ५४+८८+७०+४२ +२+४+२=कुल' जोड़ २९० होता है।
उक्त २६० प्रकृतियों में से प्रत्येक में चौबीस-चौबीस भंग प्राप्त होते हैं अत: २६० को २४ से गुणित करने पर कुल ६९६० होते हैं । इस संख्या में एक प्रकृतिक उदयस्थान के ग्यारह भंग सम्मिलित नहीं हैं । अतः उन ग्यारह भंगों के मिलाने पर कुल संख्या ६९७१ हो जाती है । यहाँ यह विशेष जानना चाहिये कि पहले जो मतान्तर से चार