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सप्ततिका प्रकरण
प्राप्ति तो अनन्तानुबंधा के उदय से होती है, अन्यथा नहीं। कहा . भी है-श्रणंतरणुबंषुषपहियसम सासणभावो न संभवद । __ अर्थात् अनन्तानुबंधी के उदय के बिना सासादन सम्यक्त्व की प्राप्ति होना संभव नहीं है।
जिज्ञासु प्रश्न करता है कि--
अयोच्यते-या मिष्यावं प्रत्यभिमुखो म मायापि मिप्यास्त्र प्रतिपाति तवानीमनम्तानुबध्युपमरहितोऽपि सासापनस्तेषां मतेन भविष्यतीति लिमनायुतम् ? तरपुस्तम्, एवं सति तस्य पवादीनि नवपलानि पवायुश्यत्वामामि भवेयुः न भवन्ति, पुत्र प्रतिषेपात, तरानभ्युपगमाय, सस्मानमन्तातु. बग्युबमरहितः सासायनो म भवतीत्यवायं प्रत्येयम् ।' ___ प्रश्न-जिस समय कोई एक जीव मिथ्यात्व के अभिमुख तो होता है किन्तु मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं होता है, उस समय उन आचार्यों के मतानुसार उसके अनन्तानुबंधी के उदय के बिना भी सासादन गुणस्थान की प्राप्ति हो जायेगी । ऐसा मान लिया जाना उचित है ।
समाधान-यह मानना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर उसके छह प्रकृतिक, सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक और नौ प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान प्राप्त होते हैं । किन्तु आगम में ऐसा बताया नहीं है और वे आचार्य भी ऐसा नहीं मानते हैं । इससे सिद्ध है कि अनन्तानुबंधी के उदय के बिना सासादन सम्यक्स्व की प्राप्ति नहीं होती है।
"अनन्तानुबंधी की विसंयोजना करके जो जीव उपशमणि पर मढ़ता है, वह गिर कर सासादन गुणस्थान को प्राप्त नहीं होता।" यह कथन आचार्य मलयगिरि की टीका के अनुसार किया गया है, तथापि कर्मप्रकृति आदि के निम्न प्रमाणों से ऐसा ज्ञात होता है कि ऐसा जीव भी सासादन गुणस्थान को प्राप्त होता है । जैसा कि कर्मप्रकृति की पूर्णि में लिखा है
चरित्वसमणं कार्डकामो असि श्रेयगसम्माविष्टी तो पुष्पं अगंतागुबंधिणो १ सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६६