Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
प्रकृतिक, सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक और नौ प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान होते हैं।
सत्रह प्रकृतिक बंधस्थान तीसरे मिश्र और चौथे अविरत सम्यक्दृष्टि इन दो गुणस्थानों में होता है। उनमें से मिश्र गुणस्थान में सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक, नौ प्रकृतिक, ये तीन उदयस्थान होते हैं ।"
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सात प्रकृतिक उदयस्थान में अनन्तानुबंधी को छोड़कर अप्रत्या ख्यानावरण आदि तीन प्रकारों के क्रोधादि कषाय चतुष्कों में से कोई एक क्रोधादि, तीन वेदों में से कोई एक वेद, दो युगलों में से कोई एक युगल और सभ्य मिथ्यात्व इन सात प्रकृतियों का नियम से उदय रहता है। यहाँ भी पहले के समान भंगों की एक चौबीसी प्राप्त होती है । इस सात प्रकृतिक उदयस्थान में भय या जुगुप्सा के मिलाने से आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह स्थान दो प्रकार
किन्तु कषायप्रामृत की परम्परा के अनुसार जो जीव उपशमणि पर चढ़ा है, वह उससे च्युत होकर सासादन गुणस्थान को भी प्राप्त हो सकता है । तथापि कषायप्रामृत की चूर्णि में अनन्तानुबंधी उपशमना प्रकृति है, इसका निषेध किया गया है और साथ में यह भी लिखा है कि वेदक सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानुबंधी चतुष्क को विसंयोजना किये बिना कषायों को उपशमाता नहीं है । मूल कषायप्राभृत से भी इस मत की पुष्टि होती है ।
सप्तदशबन्धका हि द्वये
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सम्यग्मिथ्यादृष्टयोऽविरतसम्यग्दृष्ट्यदच । तत्र सम्यग्मिथ्यादृष्टीनां त्रीणि उदयस्थानानि तद्यथा— सप्त, अष्ट, नव । -सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६६ २ तत्रान्तानुबन्धियः त्रयोऽन्यतमे क्रोधादयः त्रयाणां वेदानामन्यतमो वैद:, त्रयोर्युगलयोरन्यतरद् युगलम् सम्यग्मिथ्यात्वं चेति सप्तानां प्रकृतीनाभुदयः सम्यग्मिथ्यादृष्टिषु ध्रुवः ।
- सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६६
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