Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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वेद, दो युगलों में से कोई एक युगल, इन पाँच प्रकृतियों का सदैव उदय रहता है ! यह स्थान न मृणाल में होता है। इसमें भंगों की एक बीबीसी होती है । पाँच प्रकृतिक उदयस्थान में भय, जुगुप्सा व सम्यक्त्व मोहनीय, इन तीन प्रकृतियों में से कोई एक प्रकृति को मिलाने से छह प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है। तीन प्रकार से इस स्थान के होने से तीन चौबीसी होती हैं। अनन्तर पाँच प्रकृतिक उदयस्थान में भय और जुगुप्सा या भय और सम्यक्त्वमोहनीय या जुगुप्सा और सम्यक्त्वमोहनीय, इन दो प्रकृतियों को मिलाने पर सात प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है । इस उदयस्थान को तीन प्रकार से प्राप्त होने के कारण तीन चौबीसी प्राप्त हो जाती हैं। आठ प्रकृतिक उदयस्थान पाँच प्रकृतिक उदयस्थान के साथ भय, जुगुप्सा और सम्यक्त्वमोहनीय को युगपद मिलाने से होता है। इस स्थान में विकल्प न होने से यहाँ भंगों की एक चौबीसी होती है ।
इस प्रकार पाँचवें गुणस्थान में तेरह प्रकृतिक बंधस्थान के रहते उदयस्थानों की अपेक्षा एक, तीन, तीन, एक, कुल मिलाकर भंगों की आठ चौबीसी होती हैं। जिनमें चार चौबीसी उपशम सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों तथा चार चौबीसी वेदक सम्यग्दृष्टि जीवों के होती हैं । वेदक सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्वमोहनीय के उदय वाली चार चोबीसी होती हैं।
अभी तक बाईस, इक्कीस, सत्रह और तेरह प्रकृतिक बंधस्थानों में उदयस्थानों का निर्देश किया है। अब आगे नौ प्रकृतिक आदि बंधस्थानों में उदयस्थानों का स्पष्टीकरण करते हैं ।
'चत्तारिमा नवबंत्रगेसु उक्कोस सत्त उदयंसा' अर्थात् नो प्रकृतिक बंधस्थान में उदयस्थान चार से प्रारम्भ होकर सात तक होते हैं । यानि नौ प्रकृतिक बंधस्थान में चार प्रकृतिक, पांच प्रकृतिक, छह प्रकृ