Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्नन्थ
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उदय हो तो पुरुष वेद के उदय के साथ होता है और यदि नपुंसक वेद का उदय है तो उसके साथ इन तार का बना होता है । इस प्रकार प्रत्येक वेद के उदय के साथ चार-चार भंग प्राप्त हो जाते हैं, जो कुल मिलाकर बारह होते हैं । ये बारह भंग हास्य और रति के उदय के साथ भी होते हैं और यदि हास्य और रति के स्थान में शोक और अरति का उदय हुआ तो उनके साथ भी होते हैं । इस प्रकार बारह को दो से गुणा करने पर चौबीस भंग हो जाते हैं।
पूर्व में बताई गई चौवीस भंगों की गणना इस प्रकार भी की जा सकती है वि हास्य-रति युगल के साथ स्त्री वेद का एक भंग तथा शोक-अरति युगल के साथ स्त्रीवेद का एक भंग, इस प्रकार स्त्रीवेद के साथ दो भंग तथा इसी प्रकार पुरुषवेद और नपुंसक वेद के साथ भी दो-दो भंग होंगे। कुल मिलाकर ये छह भंग हुए। ये छहों भंग, कोष के उदय में क्रोध के साथ होंगे। क्रोध के बजाय मान का उदय होने पर मान के साथ होंगे । मान के स्थान पर माया का उदय होने पर माया के साथ भी होंगे और माया के स्थान पर लोभ का उदय होने पर लोभ के साथ भी होंगे । इस प्रकार से पूर्वोक्त छहों भंगों को क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार से गुणित करने पर कुल चौबीस भंग हुए । अर्थात् क्रोध के छह भंग, मान के छह भंग, माया के छह भंग और लोभ के छह भंग । यह एक चौबीसी हुई।
इन सात प्रकृतियों के उदय में भय, जुगुप्सा और अनन्तानुबंधी चतुष्क में से कोई एक कषाय, इस प्रकार इन तीन प्रकृतियों में से क्रमशः एक-एक प्रकृति के उदय को मिलाने पर आठ प्रकृतिक उदय तीन प्रकार से प्राप्त होता है । सात प्रकृतिक उदय में भय को मिलाने से पहला आठ प्रकृतियों का उदय, सात प्रकृतिक उदय में जुगुप्सा को मिलाने से दूसरा आठ प्रकृतियों का उदय और अनन्तानुबंधी क्रोधादि