Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्म प्रत्य
इसो— इसके बाद चचयंबाई-चार आदि प्रकृतिक बंधस्थानों में, इक्कुदया – एक एक प्रकृति के उदय वाले, हवंति - होते हैं, सब्जेवि - सभी अंधोवरमे-बंध के अभाव में, विभी, सहर उसी प्रकार, उवयाभावे - - उदय के अभाव में, वि-मी, वा - विकल्प, होज्जा — होते है ।
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गाथा - बाईस प्रकृतिक बंधस्थान में सात से लेकर दस तक इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान में सात से लेकर नो तक, सत्रह प्रकृतिक बंधस्थान में छह से लेकर नौ तक और तेरह प्रकतिक बंधन में पाँच से लेकर आठ ---
नौ प्रकृतिक अंधस्थान में चार से लेकर उत्कृष्ट सात प्रकृतियों तक के चार उदयस्थान होते हैं तथा पाँच प्रकृतिक बंधस्थान में दो प्रकृतियों का उदय जानना चाहिये ।
इसके बाद ( पाँच प्रकृतिक बंधस्थान के बाद ) चार आदि ( ४,३,२.१ ) प्रकृतिक बंधस्थानों में एक प्रकृति का उदय होता है । बंध के अभाव में भी इसी प्रकार एक प्रकृति का उदय होता है। उदय के अभाव में भी मोहनीय की सत्ता विकल्प से होती है।
विशेषार्थ - - पूर्व में मोहनीय कर्म के बाईस, इक्कीस आदि प्रकृतिक दस बंधस्थान बतलाये हैं। यहां तीन गाथाओं में उक्त स्थानों में से प्रत्येक में कितनी कितनी प्रकृतियों का उदय होता है, इसको स्पष्ट किया है।
सर्वप्रथम बाईस प्रकृतिक बंधस्थान में उदयस्थानों का कथन करते हुए कहा है-सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक, नो प्रकृतिक और दस प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान हैं। जिनका स्पष्टीकरण नीचे किया जा रहा है ।