Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
सत्ता पाँचवे गुणस्थान तक, देवायु की सत्ता ग्यारहवें गुणस्थान तक और मनुष्यायु की सत्ता चौदहवें गुणस्थान तक पाई जाती है । गो० कर्मकांड में भी इससे है दिगम्बर ग्रन्थों में भी
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·
यही एक मत पाया जाता है।
यहाँ जो वर्णन किया गया है वह दूसरे मत - उपरतबंध की अपेक्षा नरकायु, तिर्यंचायु और मनुष्यायु की सत्ता सातवें गुणस्थान तक पाई जाती है— के अनुसार किया है। आचार्य मलयगिरि ने इसी मत के अनुसार सप्ततिका प्रकरण टीका में विवेचन किया है"बन्धे तु व्यवच्छिन्ने मनुष्यायुष उदयो नारक- मनुष्यायुषी सती, एष विकल्पोऽप्रमत्तगुणस्थानकं यावत्, नारकायुबन्धानन्तरं संयमप्रतिपत्तेरपि सम्भवात् । मनुष्यायुष उदयस्तिर्यङ, मनुष्यायुषी सती, एषोऽपि विकल्पोऽप्रमत्तगुणस्थानकं यावत् । मनुष्यायुष उदयो मनुष्य मनुष्यायुषी सती, एषोऽपि विकल्पः प्राग्वत् । मनुष्यायुष उदयो देव मनुष्यायुषी सती, एष विकल्प उपशान्तमोहगुणस्थानकं यावत् देवायुषि बद्धेऽप्युपशमश्रेण्या रोह सम्भवात् ।” सप्ततिका प्रकरण टोका, पृ० १६०
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श्वेताम्बर कर्म साहित्य में इसी मत की मुख्यता है | मनुष्यगति के नौ संवेध भंगों का विवरण निम्न प्रकार समझना चाहिये-
भंग क्रम
१
116 ला द र
काल
अबन्ध
बंधकाल
13
"
"
उप० बन्न
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21
बंध
०
नरक
तिर्यच
मनुष्य
देव
०००
उदय
मनुष्य मनुष्य
13
גת
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י
J7
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श
सत्ता
नरक, मनुष्य म० लिये ०
म० म०
म० दे०
म० न०
म० ति०
गुणस्थान
सभी चौदह गुण
१
१,२
१,२
१, २, ४, ५, ६, ७ १,२,३,४,५,६,७ १,२,३,४,५,६,७ १,२,३,४,५,६,७ १ से ११ गुण० तक
म० म०
| म० • •