Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
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दो समय कम दो आवली प्रमाण है । क्योंकि छह नोकषायों के क्षय होने पर पुरुषवेद का दो समय कम दो आवली काल तक सत्त्व देखा जाता है । इसके बाद पुरुषवेद का क्षय हो जाने से चार प्रकृतिक, चार प्रकृतिक में से संज्वलन कोष का दाय होने पर तीन प्रकृतिक और तोन प्रकृतिक में से संज्वलन मान का क्षय हो जाने पर दो प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। ये नौवें गुणस्थान में प्राप्त होते हैं । इनका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ।
दो प्रकृतिक सत्तास्थान में से संज्वलन माया का क्षय होने पर एक प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। यह नौवें और दसवें गुणस्थान में प्राप्त होता है तथा इसका काल जघन्य व उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है ।
मोहनीय कर्म के उक्त अट्ठाईस प्रकृतिक आदि पन्द्रह सत्तास्थानों का क्रम आचार्य मलयगिरि ने संक्षेप में बतलाया है। उपयोगी होने से उक्त अंश यहाँ अविकल रूप में प्रस्तुत करते हैं
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सर्वप्रोिष्टाविंशतिः । ततः सम्यक्श्वे जवलिते शतिः । ततोऽपि सस्यम्मध्यात्वे उदखलिते षड्वंशतिः, अनाविमिष्याविशतिः । अष्टाविंशतिसत्कर्मणोऽनन्तानुबन्धिचतुष्टयक्ष ये विंशतिः । ततोऽपि मिध्यात्वं क्षपिते त्रयोविंशतिः । ततोऽपि सम्यग्मिथ्यात्वे अपिते द्वाविंशतिः । ततः सम्यक्स्ये क्षपिते एकविशतिः । ततोऽष्टस्वप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणसंज्ञेषु कथायेषु श्रोणेषु त्रयोदशः। ततो नपुंसक क्षपिते द्वादश । ततोऽपि स्त्रीबेदे क्षपिते एकादश । ततः षट्सु नोकदायेषु क्षीणेषु पञ्च । ततोऽपि पुरुषवेदे क्षीणं चतस्त्रः । ततोऽपि संकलनको क्षपिते तित्रः । ततोऽपि संवलनमा क्षपिते । ततोऽपि संज्वलन मायायः क्षपितायामेका प्रकृतिः सतोति । '
सतास्थानों के स्वामी और काल सम्बन्धी दिगम्बर साहित्य का मत श्वेताम्बर कार्मेग्रन्थिक मत के समान ही दिगम्बर कर्मसाहित्य १ सप्ततिका प्रकरण टीका,
पृ० १६३