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षष्ठ कर्मग्रन्य
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प्राप्त करके अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर क्षपक श्रेणी पर चढ़कर मध्य की आठ कषायों का क्षय होना सम्भव है । उत्कृष्टकाल साधिक तेतीस सागर इसलिये है कि उक्त समयप्रमाण तक जीव इक्कीस प्रकृतिक सत्तास्थान के साथ रह सकता है ।
इक्कीस प्रकृतिक सत्तास्थान में से अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क और प्रत्याख्यानावरण चतुष्क, इन आठ प्रकृतियों का क्षय हो जाने पर तेरह प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । यह स्थान क्षपक श्रेणी के नौवें गुणस्थान में प्राप्त होता है । इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । क्योंकि तेरह प्रकृतिक सत्तास्थान से बारह प्रकृतिक सत्तास्थान प्राप्त करने में अन्तर्मुहूर्त काल लगता है ।.
इस तेरह प्रकृतिक सत्तास्थान में से नपुंसक वेद के क्षय हो जाने पर बारह प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । यह भी नौवें गुणस्थान में प्राप्त होता है और इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। क्योंकि बारह प्रकृतिक सत्तास्थान से ग्यारह प्रकृतिक सत्तास्थान के प्राप्त होने में अन्तर्मुहूर्त काल लगता है।
जो जीव नपुंसक वेद के उदय के साथ क्षपक श्रेणी पर चढ़ता है, उसके नपुंसक वेद की क्षपणा के साथ स्त्रीवेद का भी क्षय होता है । अन. ऐसे जीव के बारह प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं पाया जाता है । जिसने नपुंसक वेद के क्षय से बारह प्रकृतिक सत्तास्थान प्राप्त किया, उसके स्त्रीवेद का क्षय हो जाने पर ग्यारह प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। इसकी प्राप्ति नौवें गुणस्थान में होती है। इसका जघन्य व उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। क्योंकि हास्यादि छह नोकषायों के क्षय होने में अन्तर्मुहूर्त समय लगता है ।
ग्यारह प्रकृतिक सत्तास्थान से छह नोकषायों के क्षय हो जाने पर पांच प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल