Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्राय तब उसके इस स्थान का अन्त देखा जाता है। सादि-सान्त विकल्प सादि मिथ्याइष्टि जीव के होता है। क्योंकि अढाईस प्रकृतिक सत्ता वाले जिस सादि मिथ्याष्टि जीव ने सभ्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्व की उद्वलना करके छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान को प्राप्त किया है, उसके इस छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान का पुन: नाश देखा जाता है ।
छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान के काल के उक्त तीन विकल्पों में से सादि-सान्त विकल्प का जघन्यकाल अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्टकाल देशोन अपार्थ पुद्गल परावर्त है। जो इस प्रकार फलित होता है-जो छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान को प्राप्त कर लेने के बाद विकरण द्वारा अन्तर्मुरने में सम्यक्त्व को प्राप्त करके पुन: अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता वाला हो गया, उसके उक्त स्थान का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है तथा कोई अनादि मिथ्यादृष्टि जीव उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ और मिथ्यात्व में जाकर उसने पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल के द्वारा सम्यक्त्व और सम्यगमिथ्यात्व की उद्बलना करके छब्बीस प्रकृतियों के सत्त्व को प्राप्त किया, पुनः वह शेष अपार्थ पुगल परावर्त काल तक मिथ्यादृष्टि रहा किन्तु जब संसार में रहने का काल अन्तर्मुहूर्त शेष रहा तब पुन: वह सम्यग्दृष्टि हो गया तो इस प्रकार छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान का उत्कृष्टकाल पल्य का असंख्यातवां भाग कम अपार्ष पुद्गल परावर्त प्रमाण प्राप्त होता है।
मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों में से अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क की विसंयोजना हो जाने पर चौबीस प्रकृतिक सत्तास्थान प्राप्त होता है । यह स्थान तीसरे से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान तक पाया जाता है। इसका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल एक सौ बत्तीस सागर है। जधन्यकाल तब प्राप्त होता है जब जीव ने अनन्तानुबन्धी चतुष्क की विसंयोजना करके चौबीस प्रकृतिक सत्ता