Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
के दो भंग, नो प्रकृतिक बंधस्थान के दो भंग, पाँच प्रकृतिक बंधस्थान का एक भंग, चार प्रकृतिक बंधस्थान का एक भङ्ग, तीन प्रकृतिक बंधस्थान का एक भंग, दो प्रकृतिक बंधस्थान का एक भंग और एक प्रकृतिक बंधस्थान का एक भंग होता है । जिसका स्पष्टीकरण नीचे किया जा रहा है ।
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बाईस प्रकृतिक बंधस्थान में मिथ्यात्व, सोलह कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्य-रति युगल और शोक अरति युगल, इन दो युगलों में से कोई एक युगल और का, इन प्रकृतियों का ग्रहण होता है । यहाँ छह भंग होते हैं । जो इस प्रकार हैं कि हास्य- रति युगल और शोक अरति युगल, इन दो युगलों में से किसी एक युगल को मिलाने से बाईस प्रकृतिक बंधस्थान होता है । अतः ये दो भंग हुए। एक भंग हास्य- रति युगल सहित वाला और दूसरा भंग अरति-शोक युगल सहित वाला ये दोनों भंग भी तीनों वेदों के विकल्प से प्राप्त होते हैं, अतः दो को तीन से गुणित कर देने पर छह भंग हो जाते हैं।
उक्त बाईस प्रकृतिक बंधस्थान में से मिथ्यात्व को घटा देने पर इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान होता है । क्योंकि नपुंसक वेद का बंत्र मिथ्यात्व के उदयकाल में होता है और सासादन सम्यग्दृष्टि को मिथ्यात्व का उदय नहीं होता है । स्त्रीवेद और पुरुषवेद, इन दो
१ खम्बादीसे चदु इगिवीसे दो हो हवंति छट्ठोत्ति एक्क्क पदोमंगो बंधट्ठाणेसु
मोहस्स ||
-गो० कर्मकाण्ड, गा० ४६७
ह्रासरइअरइलोगाण बंधया आणवं दुहा सच्चे " बेयविमज्जता पुण दुगङ्गवीसा छहा चहा ||
-- पंचसंग्रह सप्ततिका, गा० २०