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षष्ठ कर्म ग्रन्थ
इस प्रकार मोहनीय कर्म के पश्चादानुपूर्वी से बन्ध और सत्ता स्थानों तथा पूर्वानुपूर्वी से उदयस्थानों को बतलाने के बाद अब इनके भंग और अवान्तर विकल्पों का निर्देश करते हैं। सबसे पहले बन्धस्थानों का निरूपण करते हैं।
छबायोस च इगवोस सत्तरस तरसे दो दो । नवबंध वि दोन्नि उ एक्केषकमओ परं भंगा || १४ ||
शब्दार्थ –छ छह, ब्धावी बाईस के बन्धस्थान के, चचचार, इगवी से इक्कीस के बन्धस्थान के, लसरत – सबह के बंधस्थान के सेरले - तेरह के बंघस्थान के वो बो—दो-दो, नवबंधणेनी के बन्धस्थान के, थिमी, दोलित – दो विकल्प, एक्केषकएक-एक, अओ - इससे, परं- आगे, भंगा-मंग ।
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गाया - बाईस प्रकृतिक बन्धस्थान के छह, इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान के चार, सत्रह और तेरह प्रकृतिक बंधस्थान के दो-दो, नौ प्रकृतिक बंधस्थान के भी दो भंग हैं । इसके आगे पाँच प्रकृतिक आदि बंधस्थानों में से प्रत्येक का एक-एक भंग है ।
विशेषार्थ - इस गाथा में मोहनीय कर्म के बंधस्थानों में से प्रत्येक स्थान के यथासंभव बनने वाले भंगों की संख्या का निर्देश किया है।
पूर्व में मोहनीय कर्म के बाईस, इक्कीस, सत्रह, तेरह, नौ, पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक, इस प्रकार से दस बंधस्थान बतलाये हैं । उनमें से यहाँ प्रत्येक स्थान के होने वाले भंग-विकल्पों को बतलाते हुए सर्वप्रथम बाईस प्रकृतिक बंधस्थान के छह भंग बतलाये हैं - छब्बावीसे । अनन्तर क्रमशः इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान के चार भंग, सह प्रकृतिक बंस्थान के दो भंग, तेरह प्रकृतिक बंधस्थान