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सप्ततिका प्रकरण
भाग काल के द्वारा सम्यक्त्व की उलना करके २७ प्रकृतियों की सत्ता वाला हुआ। इस प्रकार २८ प्रकृतिक सत्तास्थान का उत्कृष्ट काल पल्य के तीन असंख्यातवें भाग अधिक १३२ सागर प्राप्त होता है।
इस प्रकार से कुछ मतभिन्नताओं का मोहनीय कर्म के सत्ताईस प्रकृतिका आदि शेष करते हैं ।
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संकेत करने के बाद सत्तास्थानों को स्पष्ट
उक्त अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थान में से सम्यक्त्व प्रकृति की उवलना हो जाने पर सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। यह स्थान मिथ्यादृष्टि और मिध्यादृष्टि को होता है तथा इसका काल पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । इसका कारण यह है कि सम्यक्त्व प्रकृति की उवलना हो जाने के पश्चात् सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति की उद्बलना में पल्य का असंख्यातवां भाग काल लगता है और जब तक सम्य मिथ्यात्व प्रकृति की उबलना होती रहती है तब तक वह जीव सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान वाला रहता है । इसीलिये सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान का काल पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण बताया है ।
सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान में से उबलना द्वारा सम्यम् - मिथ्यात्व प्रकृति को घटा देने पर छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । यह स्थान भी मिथ्यादृष्टि जीव को होता है । काल की दृष्टि से इस स्थान के तीन विकल्प है- १. अनादि-अनन्त, २ अनादि- सान्त, ३. सादि सान्त । इनमें से अनादि-अनन्त विकल्प अभव्यों की अपेक्षा है, क्योंकि उनके छत्रीस प्रकृतिक सत्तास्थान का आदि और अन्त नहीं पाया जाता है । अनादि-सान्त बिकल्प भव्यों के पाया जाता है । क्योंकि अनादि मिथ्यादृष्टि भव्य जीव के छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान आदि रहित अवश्य हैं, लेकिन जब वह सम्यक्त्व प्राप्त कर लेता है