Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ फर्मग्रन्थ
में भी मोहनीय कर्म के अद्राईस प्रकृतिक आदि पन्द्रह सत्तास्थान माने हैं। उनके स्वामी और काल के बारे में भी दोनों साहित्य में अधिकतर समानता है। लेकिन कुछ स्थानों के बारे में दिगम्बर साहित्य में भिन्न मत देखने में आता है । जिसको पाठकों की जानकारी के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है । ___अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थान के काल के बारे में दिगम्बर साहित्य के मत का पूर्व में उल्लेख किया गया है। शेष स्थानों के बारे में यहाँ बतलाते हैं।
श्वेताम्बर साहित्य में सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान का स्वामी मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिय्यादृष्टि जीव को बतलाया है। लेकिन दिगम्बर परम्परा के अनुसार कषायप्राभूत की चूणि में इस स्थान का स्वामी मिथ्यादृष्टि जीव ही बतलाया है--
सत्ताधीसाए बिहत्तिओ को होवि ? मिसाइट्टी। पंचसंग्रह के सप्ततिका संग्रह की माथा ४५ की टीका में सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान का काल पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण बतलाया है । लेकिन जयधवला में संकेत है कि सत्ताईस प्रकुतियों की सत्तावाला भी उपशम सम्यादृष्टि हो सकता है। कषायप्राभूत की चूणि से भी इसकी पुष्टि होती है । तदनुसार सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान का जघन्य काल एक समय भी बन जाता है। क्योंकि मत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान के प्राप्त होने के दूसरे समय में ही जिसने उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त कर लिया, उसके सत्ताईस प्रकृतिक सत्तास्थान एक समय तक ही देखा जाता है।
श्वेताम्बर साहित्य में सादि-सान्त छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त बताया है। लेकिन कषायप्राभृत की पूर्णि में उक्त स्थान का जघन्य काल एक समय बताया है
'पन्यासविहती संबधिर कालायो ? जहण एसओ ।'