Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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६
सप्ततिका प्रकरण
गोत्रकर्म के सामान्य से भंग बतलाने के पश्चात् अब इन स्थानों के संवेध भङ्ग बतलाते हैं। गोत्रकर्म के सात संवेध भङ्ग इस प्रकार हैं१. नीचगोत्र का बंध, नीचगोत्र का उदय और नीचगोत्र
की सत्ता। २. नीचगोत्र का बंध, नीचगोत्र का उदय और नीच-उच्च ___ गोत्र की सत्ता । ३. नीचगोत्र का बंध, उच्चगोत्र का उदय और उच्च-नीच
गोत्र की समा। ४. उच्चगोत्र का बंध, नीत्रगोत्र का उदय और उच्च-नीच
गोत्र की सत्ता। ५. उच्च गोत्र का बंध, उच्चगोत्र का उदय और उच्च-नीच
गोत्र की सत्ता। ६. उच्चगोत्र का उदय और उच्च-नीच गोत्र की सत्ता । ५७. उच्चगोत्र का उदय और उच्चगोत्र की सत्ता ।
इनमें से पहला भङ्ग उच्चगोत्र की उद्वलना करने वाले अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों के होता है तथा ऐसे जीव एकेन्द्रिय, विकलत्रय और पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं तो उनके भी अन्तर्मुहूर्त काल तक के लिये होता है। क्योंकि अन्तर्मुहूर्त काल के पश्चात् इन एकेन्द्रिय आदि जीवों के उच्चगोत्र का बंध नियम से हो जाता है । दूसरा और तीसरा भङ्ग मिथ्या दृष्टि और सासादन इन दो गुणस्थानों में पाया जाता है, क्योंकि नीचगोत्र का बंधविच्छेद
द्वे सत्तास्थाने, तद्यथा- एक च । तत्र उच्चाय-नीचैर्गोत्रे समुदिते द्वे, तेजस्कायिक-वायुकापिकावस्थायां उच्चैर्गोत्रे उद्वलिते एकम, अथवा नीचर्गोत्रेऽयोगिकेवलिविचरमसमये क्षीणे एकम् ।।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १५१