________________
वष्ठ कर्मग्रन्म
६६
सातवें गुणस्थान में एक जीव देशोन पूर्वकोटि प्रमाण रह सकता है । इसीलिये तो प्रकृतिक बंधस्थान का उत्कृष्टकाल उक्त प्रमाण है । पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक बंधस्थान नौवें अनिवृत्तिबादर संपराय गुणस्थान के पांच भागों में होते हैं और इन सभी प्रत्येक बंधस्थान का जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल' अन्तर्मुहूर्त है। क्योंकि नौवें गुणस्थान के प्रत्येक भाग का जधन्यकाल एक समय और उत्कष्ट काल अन्तर्म हर्त है। मोहनीय कर्म के दस बंधस्थानों का स्वामी व काल सहित विवरण इस प्रकार है
काल
बंस्थान
२२ प्र०
२१ प्र०
१७ प्र०
१३ प्र०
६ प्र०
भू
४
३
२
21
"
"
"
पहला
दुस ख
३, ४ था
५ व
६, ७, ८ वॉ
नौवें का पहला भाग
दूसरा भाग
तीसरा भाग
चौथा भाग
पाँचवाँ भाग
r
גן
را
गुणस्थान
IP
1,
J2
"
.
अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त
37
तुलना कीजिये – दस णव अट्ठ य सत् य उदपणा मोहे णव
JP
एक समय
17
"
जघन्य
〃
ri
—
उत्कृष्ट देशोन अपर
छह आवली साधिक ३३ सागर देशोन पूर्वकोटि
अन्तर्मुहूर्त
15
पण चत्तारि दोणि एव च । चैव य होंति नियमेण ॥
12
"
J
"
HOW
मोहनीय कर्म के दस बंघस्थानों को बतलाने के बाद अब उदयस्थानों का कथन करते हैं ।
एक्कं व दो व चउरो एस्तो एक्काहिया दसुक्कोसा। ओहेण मोहणिज्जे उदयद्वाणा नव हवंति ॥ ११ ॥ |
- गो० फर्मकांड, गा० ४७५