Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरणं
विशेषार्थ -- उक्त दो गाथाओं में मोहनीय कर्म की प्रकृतियों के सत्तास्थानों में प्रकृतियों की संख्या बतलाई है कि अमुक सत्तास्थान इतनी प्रकृतियों का होता है । सत्तास्थानों के भेदों का संकेत करने के बाद बंध, उदय और सत्ता स्थानों के संवेध भंगों की अनेकता की सूचना दी है। जिनका वर्णन आगे यथाप्रसंग किया जा रहा है। मोहनीय कर्म के कितने सत्तास्थान होते हैं, इसका संकेत करते हुए कार ने बताया कि ताणि मोहस्स हुति पतरस - मोहनीय कर्म प्रकृतियों के सत्तास्थान पन्द्रह होते हैं । ये पन्द्रह सत्तास्थान कितनी कितनी प्रकृतियों के हैं, उनका स्पष्टीकरण क्रमश: इस प्रकार है-- अट्ठाईस सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस, तेईस, बाईस, इक्कीस, तेरह, वारह, ग्यारह पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक । 1 कुल मिलाकर ये पन्द्रह सत्तास्थान होते हैं ।
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१ (क) बगसत
तेरस बारेक्कारस संते
गच उति मदुग एककमा क्रिया
(ख) अट्ठयसत्तयकय तेरस
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बोला । पंचाह जा एकं ॥
बारेयारं पणादि
- पंचसंग्रह सप्ततिका १० ३५
चदुतिदुरोगाविगाणि बोसाणि । एगुणमं सन्त ॥
- गो० कर्मकांड ग्रा०५०६
२ इन पन्द्रह सत्तास्थानों में से प्रत्येक स्थान में ग्रहण की गई प्रकृतियों की संग्रह गाथायें इस प्रकार हैं
नव नोकसाय सोलस कसाय दंसणसिगं ति अडवीसा । सम्मत्तुवलणं मिच्छे मीसे य समवीसा ॥
छब्बीसा पुण दुविहा मीसुव्वलणे अणा६ मिच्छते । सम्मा अणक्खए होइ वीसा || मिच्छे मोसे सम्मे खीणे विन्दुवीस एककवीसा य । अद्रुकसाए तेरस ननु क्खए पीवेयि खोणिगारस हासाइ पंचखज कोहे माणे माया लोभे खीणे म तिगु दुग एग असंत मोहे पन्नरस
होइ
बारसगं ||
पुरिसखीणे 1 कमसो उ ॥ संतठाणाणि ।
---षष्ठ कर्मप्रय प्राकृत टिप्पण, गा० २८-३२