Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्म गन्थ : गा. ४
आदि के तेरह जीवस्थानों के दो-दो भंगों का विवरण इस प्रकार समझना चाहिये
जीवस्थान
उदय
सू०
अ०
मा० ए० अप० । बा० ए०प० द्वी० अ३० दा० ५० मो० सप० श्री०प० च० अप० च० प० असं० ० अप० असं० ० प० । सं०० अप०
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'एगम्मि पंचभंगा' अर्थात् पूर्वोक्त तेरह जीवस्थानों से शेष रहे एक चौदहवें जीवस्थान में पांच भंग होते हैं। इन पाँच भंगों में पूर्वोक्त दो भंग-१. सात प्रकृतिक बन्ध, आठ प्रकृतिक उदय व सत्ता, २. आठ प्रकृतिक बन्ध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता तो होते ही हैं। साथ में १. छह प्रकृतिक बन्ध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता, २. एक प्रकृतिक वन्ध, सात प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता, ३. एक प्रकृतिक बन्ध, सात प्रकृतिक उदय और सात प्रकृतिक सत्ता यह तीन भंग और होते हैं । इस प्रकार पर्याप्त संशी पंचेन्द्रिय के कुल पांच भंग समझने चाहिये ।