Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ है, उसके अन्य गुणस्थानों का पाया जाना सम्भव है । इस प्रकार लियंचगति में अबन्ध, वंध और उपरतबंध की अपेक्षा कुल नौ भंग होते हैं । तिर्यंचगति में आयुकर्म के संगों का विवरण इस प्रकार है--
मंग क्रम
बाल
| बंध
अवन्ध
बंधकाल
नरक तियंच | मनुष्य
..
उदय __ सत्ता । गुणस्थान तिर्यंच तिथंच १,२,३,४,५ तियं च ३० ति १ तिर्य च तिरंच सिः | १.२ तिर्मच । म ति० ! १,२ । तिर्यव | देव ति० | १,२,४,५ तिर्यत्र | ति. न. १,२,३,४,५ तिर्यंच लियंच ति० १,२,३,४,५ ! तिसंच ति० म० १,२,३,४,५ तिर्यंच ति० दे० । १,२,३,४,५
' देव
उप० बंध
वि० ० ०
मनुष्यायु के संबंध भंग-नरक, देव और तियंचायु के संवेध भंगों का कथन किया जा चुका है। अब शेष रही मनुष्यायु के भंगों को बतलाते हैं । मनुष्यायु के भी नौ भंग हैं। जो इस प्रकार समझना चाहिये___ मनुष्यगति में अवन्धकाल में एक ही भंग-मनुष्यायु का उदय और मनुष्यायु की सत्ता होता है । यह भंग पहले से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक सभी गुणस्थानों में होता है। क्योंकि मनुष्यगति में यथासम्भव सभी चौदह गुणस्थान होते हैं ।
बंधकाल में–१. मरकायु का बंध, मनुष्यायु का उदय और नरकमनुष्यायु की सत्ता । २. तिथंचायु का बंध, मनुष्यायु का उदय और तिर्यंच-मनुष्यायु की सत्ता ३. मनुष्याय का बंध, मनुण्यायु का उदय
और मनुष्य-मनुष्यायु की सत्ता तथा ४. देवायु का बंध, मनुष्याय का उदय और देव-मनुष्यायु की सत्ता, यह चार भंग होते हैं ।