Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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व कर्मग्रम्य
५१
हैं । परन्तु इतनी विशेषता है कि नरकायु के स्थान में सर्वत्र देवायु कहना चाहिये। जैसे देवायु का उदय, देवायु की सत्ता आदि ।' देवायु के पाँच भंगों का कथन इस प्रकार होगा -
१. देवायु का उदय और देवायु की सत्ता (अबन्धकाल) 1 २. तिचायुका बंध, देवायु का उदय और तिर्यंच देवायु की सत्ता (बंधकाल) 1
३. मनुष्यायु का बंब, देवायु का उदय और मनुष्य देवायु की सत्ता ( बंधकाल ) |
४. देवायु का उदय और देव तिर्यंचायु का सत्य ( उपरतबंधकाल) ।
५. देवायु का उदय और देव मनुष्यायु का सत्व ( उपरतबंधकाल) उक्त भंगों का विवरण इस प्रकार है
बंध
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१.
२
३
४
५.
काल
अवन्धकाल
बंधकाल
बंधकाल उप० बंधकाल उप० बंघकाल
तियंच
मनुष्य
०
D
उदय
देव
देव
देव
क्षेत्र
1
| देव
ससा
देव
ति०, देव
बेय, म०
दे० ति०
दे० म०
गुणस्थान
१,२,३,४
१.२
१,२.४
१,२,३,४
१,२,३,४
तिचायु के संबंध भंग - तियंचगति में आयुकर्म के संवेध भंगविकल्प नौ होते हैं । जिनका कथन इस प्रकार है कि अबन्धकाल में तिचाधु का उदय और तिर्यंचायु की सत्ता यह एक भंग होता है, जो
१ एवं देवानामपि पंचविकल्या भावनीयाः ३ नवरं नारकायुः स्याने देवारिति वक्तव्यम् । तद्यथा— देवायुष जदयो देवायुषः सत्ता इत्यादि ।
-- सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६०