Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
प्रारंभ के पाँच गुणस्थानों में पाया जाता है। क्योंकि तियंचति में आदि के पाँच गुणस्थान ही होते हैं, शेष गुणस्थान नहीं होते हैं ।
तिर्यंचगति में बन्धकाल के समय निम्नलिखित चार भंग होते हैं--१. नरकायु का बंध, तिर्यंचायु का उदय और मरक-तिर्यंचायु की सत्ता । २. तिर्यंचायु का बंध, तिर्यंचायु का उदय और तिर्यच. तिर्यंचायु की सत्ता, ३. मनुष्यायु का बन्ध, तिथंचायु का उदय और मनुष्य-तियंचायु की सत्ता तथा-४ जायु का 53,
लिना उदय और देव-तियंचायु की सत्ता।
इनमें से पहला भंग मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में होता है, क्योंकि मिथ्याइष्टि गुणस्थान के सिवाय अन्यत्र नरकायु का बंध नहीं होता है। दूसरा भंग मिथ्याष्टि और सासादन गुणस्थानों में होता है, क्योंकि तिर्य चायु का बंध सासादन गुणस्थान तक ही होता है। तीसरा भंग भी पहले और दूसरे गुणस्थान-मिथ्यात्व और सासादन तक होता है, क्योंकि तिर्यंच जीव मनुध्यायु का बंध मिथ्यादृष्टि और सासादन गुणस्थान में ही करते हैं, अविरत सम्यग्दृष्टि और देशविरत गुणस्थान में नहीं। चौथा भंग तीसरे सम्यगमिथ्याष्ट्रि (मिथ) गुणस्थान को छोड़कर पौत्रवें देशविरत गुणस्थान तक चार गुणस्थानों में होता है। सम्यमिथ्या दृष्टि गुणस्थान में आयुकर्म का बंध न होने से उसका यहां ग्रहण नहीं किया गया है । __इसी प्रकार उपरतबंधकाल में भी चार भंग होते हैं। जो इस प्रकार हैं-१. तिर्यंचायु का उदय और नरक-तिर्यंचायु की सत्ता, २. तिर्यंचायु का उदय और तिर्यच-तियंचायु की सत्ता, ३. तिर्यंचायु का उदय और मनुष्य-तियंचायु की सत्ता और ४. तिर्यंचायु का उदय तथा देव-तिर्यंचायु की सत्ता ।। __ ये चारों भंग प्रारम्भ के पांच गुणस्थानों में होते हैं, क्योंकि जिस तिथंच ने नरकायु, तिर्यंचायु और मनुष्यायु का बंध कर लिया