Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
षष्ठ कर्मग्रन्ध : गा०७
गाथार्थ-दर्शनावरण कर्म के बंध और सत्ता के प्रकृतिस्थान नी एक समान होते हैं । नगरथान चार तथा पांच प्रकृतिक इस प्रकार दो होते हैं ।
विशेषार्थ-गाथा में दर्शनावरण कर्म की उत्तर प्रकृतियों के संवेध भंग बतलाये हैं । दर्शनावरण कर्म की कुल उत्तर प्रकृतियाँ नो हैं । जिनके बंधस्थान तीन होते हैं-नौ प्रकृतिक, छह प्रकृतिक और चार प्रकृतिक । इसी प्रकार सत्तास्थान के भी उक्त तीन प्रकार होते हैंनौ प्रकृतिक, छह प्रकृतिक, चार प्रकृतिक । जिसका स्पष्टीकरण नीचे किया जाता है।
नौ प्रकृतिक बंधस्थान में दर्शनावरण कर्म की सब प्रकृतियों का बंध होता है । छह प्रकृतिक बंधस्थान में स्त्याद्धित्रिक को छोड़कर शेष छह प्रकृतियों का तथा चार प्रकृतिक बंधस्थान में पांच निद्राओं को छोड़कर शेष चक्षुदर्शनावरण आदि केवलदर्शनावरण पर्यन्त चार प्रकृतियों का बंध होता है।
उक्त तीन बंधस्थानों में से नौ प्रकृतिक बंधस्थान पहले और दुसरे-मिथ्यात्व, सासादन-गुणस्थान में होता है । छह प्रकृतिक बंधस्थान तीसरे सम्यमिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान के पहले भाग तक तथा चार प्रकृतिक बंघस्थान अपूर्वकरण गुणस्थान के दूसरे भाग से लेकर दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक होता है । - - ----- --- १ तत्र सर्वप्रकृतिसमुदायो नव, ता एवं नव स्त्यानद्धित्रिकहीनाः षट, एताश्च
निद्रा-प्रचलाहीनाश्चतस्रः । -सप्ततिका प्रकरण का, पृ० १५६ तत्र नवप्रकृत्यात्मकं बंधस्थान मिध्यादृष्टो सासादने वा । षट्प्रकृत्यात्मक बन्धस्थानं सम्यग्मिथ्याष्टिगुणस्थानकादारभ्यापूर्वकरणस्य प्रयमं मागं वायत् । चतुष्प्रकृत्यात्मकं तु बंधस्थानमपूर्वकरणद्वितीयभागादारभ्य सूक्ष्मसंपरायं यावत् ।
--सप्ततिका प्रकरण टीका, पु० १५६