Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
काल
| उघय सत्ता गुणस्थान
जीवस्थान
| अघन्य जस्कृष्ट १४ अन्तमुहर्त | देशोन
अपार्थ
१ से १० गुणस्थान
परावर्त
५ | ११ वा । १ संज्ञी एक समय | अन्तमुहर्त
१२ वी ' पर्याप्त । ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म की उत्तर प्रकृतियों के संवेध भंग बतलाने के बाद अब दर्शनावरण कर्म के संवैध भंगों को बतलाते हैं । दर्शनावरण कर्म
बंधस्स य संतस्स य पगइट्ठाणाई तिन्नि तुल्लाई। उपयवाणाई दुवे घउ पणगं दसगावरणं ॥७॥
शब्दार्थ-बंधस्स--बंध के, य-और, संतस्स–सत्ता के, य-और, पगइट्ठाणाई–प्रकृतिस्थान, तिनि-तीन, तुल्लाईसमान, उदयढागाई–उदयस्थान, दुवे-दो, चउ-चार, पणगंपाँच, सणावरणे-दर्शनावरण कर्म में।।
१ पहले भंग का जो उत्कृष्ट काल देशोन अपार्ध पुद्गल परावर्त बतलाया
है, वह काल के सादि-सान्त विकल्प की अपेक्षा बताया है। क्योंकि जो जीव उपशान्तमोह गुणस्थान से च्युत हाकर अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर उपशान्तमोह या क्षीणमोह हो जाता है, उसके उक्त भग का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है तथा जो अपार्ध पुद्गल परावत काल के प्रारंभ में सम्यादृष्टि होकर और उपशमणि चड़कर उपशान्तमोह हो जाता है, अनन्तर जब संसार में रहने का काल अन्तर्मुहूर्त शेष रहता है तथ क्षपकश्रोणि पर चढ़कर क्षीणमोह हो जाता है, उसके उा भंग का उत्कृष्ट काल देशोन अपाधं पुद्गल परावर्त प्रमाण प्राप्त होता है ।