Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पाट कर्म ग्रन्थ : गा० ८
गति आचार्य ने भी अपने पंचसंग्रह में यही मत स्वीकार किया है कि क्षपकौणि और क्षीणमोह में दर्गनावरण की चार या पांच प्रतियों का उदय होता है ।। गो० कर्मकांड में भी इसी मत को स्वीकार किया गया है।
इस प्रकार दिगम्बर परम्परा की मान्यतानुसार चार प्रकृतिक बंध, पांच प्रकृतिक उदय और इन्ट प्रकृतिक सत्ता. यह एक भंग नौवें, दसवें गुणस्थान में तथा पाँच प्रकृतिक उदय और छह प्रकृतिक सत्ता यह एक भंग क्षीणमोह गुणस्थान में वड़ जाता है। इसलिथे दर्शनावरण कर्म के संवेध भंग बतलाने के प्रसंग में इन दोनों भंगों को मिलाने से तेरह भंग दिगम्बर परम्परा में माने जाते हैं, लेकिन श्वेताम्बर परम्परा में ग्यारह तथा मतान्तर से तेरह भंगों के दो विकल्प हैं।
दर्शनावरण कर्म के बंध, उदय, सत्ता के संवैध ११ अथवा १३ भंगों का विवरण इस प्रकार समझना चाहिये-- | बंध | उदय । सत्ता
गुणस्थान
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३,४,५,६,७,८ ८,९,१०३
१. योनंव द्वयोः षत वप च चतुष्टयम् । पञ्च पञ्चसु शून्यानि भङ्गाः सन्ति त्रपदश ।।
-पंचसंग्रह, अमितिगति, श्लोक ३८८ २. गो० कर्मकांड गा० ६३१, ६३२, जो पृ० ३६ पर उद्धृत है। ३. पांचवां भंग उपशाम क्षएक दोनों श्रेणि में होता है, लेकिन इतनी विशेषता
है कि सपकणि में इसे नौवें गुणस्थान के संख्यात भागों तक ही जानना। आगे क्षपक णि में सातवां भंग प्रारम्भ हो जाता है।