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[पुण्य-पाप की व्याख्या भी पदार्थ हैं, सत, रज और तम तीनों गुणोंका सबसे सम्बन्ध है। गीता अ०१८ मे कहा गया है।
म तदस्ति पृथिव्यां वा दिवि देवेषु वा पुनः । सच्चं प्रकृतिजमुक्तं यदेमिः स्यास्त्रिभिगुणेः ॥ (श्लोक ४०)
अर्थः-पृथ्वी या स्वर्गमे अथवा देवताओमें ऐसा कोई पदार्थ नहीं, जो प्रकृति के इन तीनो गुणोंसे रहित हो।
अर्थात् पापाणसे लेकर चारों खानि व चारों वाणिमें जितने भी पदार्थ है, सव इन त्रिगुणोंसे सम्बन्धवाले हैं । यावत् प्रपंच जबकि प्रकृतिका कार्य है तो प्रत्येक वस्तुमें प्रकृति के तीनों गुणों का रहना भी आवश्यक है। तीनों गुणोंमेंसे किसी एक गुणका प्रत्येक पदार्थम विकाम होता है, शेष दो दवे रहते हैं, सम्बन्ध तीनों गुणीका ही बना रहता है । जिस गुणका जिस पदार्थमें विकास होता है, वह पदार्थ उस गुणवाला ही कहा जाता है। पाषाण तमोगुणकी गाढ अवस्थासे सम्बन्ध रखता है, परन्तु तमोगुणकी इस अवस्थाके रहते हुए भी हीरे, माणिक आदिमे प्रकाशके कारण सत्त्वगुणका विकास देखा जाता है, क्योकि सत्त्वगुण प्रकाशरूप है। पापारणमें भी जीव माना गया है, इसका स्पष्ट प्रमाण यह है कि पापाण अथवा मृत्तिकाकी खानिमे पापाण तथा भृत्तिका निकाल कर कुछ कालके लिये यदि उसको छोड़ दें तो वह खानि अवश्य पूर्वकी अपेक्षा बढ़ी हुई दिखलाई पड़ती है। विकासवादकी दृष्टिसे इससे आगे जव जीवभावका विकास उद्भिजवर्गमे प्रकट होता है, तब उनमें तमोगुणकी क्षीण अवस्था का विकास देखा जाता है, इसी कारण उनमें दिन-दिन उपरकी ओर गति होती जाती है। तमोगुणकी गाढ़ताके कारण पाषण में गति भान नहीं होती थी परन्तु तमोगुणकी क्षीणताके कारण उद्धिनों मे उसका भान होने लगता है। वृक्षादिक तमोगुणी