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आगम के अनमोल रत्न
विमलवाहन की जब आयु छः महीने शेष थी तब उसकी पत्नी चन्द्रयशा ने एक युगल सन्तान को जन्म दिया । इस पुरुष का नाम चक्षुष्मान् और स्त्री का नाम चन्द्रकाता रखा । विमलवाहन की मृत्यु के बाद द्वितीय कुलकर चक्षुष्मान बने । इन्होंने अपने पिता की हाकार नीति से ही युगलियों पर अनुशासन किया । चक्षुष्मान् की पत्नी चन्द्रकान्ता ने भी यशस्वी और सुरूपा नाम के युगल पुत्र-पुत्री को जन्म दिया । अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद यशस्वी कुलकर बने । सुरूपा पत्नी बनी । इसने 'हाकार और माकार' नामक दण्डनीति का प्रचलन किया । .
यशस्वी कुलकर की पत्नी ने अभिचन्द्र नामक बालक और प्रतिरूपा नामक बालिका को जन्म दिया। पिता की मृत्यु के बाद अभिचन्द्र चौथा कुलकर बना । इसने भी हाकार और माकार नीति का प्रचलन किया
अभिचन्द्र की पत्नी प्रतिरूपा ने भी एक युगल को जन्म दिया प्रसेनजित् व चक्षुःकाता इनका नाम रक्खा ।
पिता की मृत्यु के बाद प्रसेनजित् पाँचवाँ कुलकर बना । इसने हाकार माकार व धिक्कार नीति से युगलियों पर अनुशासन किया । आयु के कुछ मास पहले प्रसेनजित् की पत्नी चक्षुःकाता ने युगल सन्तान को जन्म दिया। इनका नाम मरुदेव और श्रीकांता रक्खा । पिता की मृत्यु के बाद मरुदेव कुलकर बना । इसने अपने पिता की तरह तीनों नीतियों का प्रचलन किया । मृत्यु के कुछ 'मास पहले उन्होंने एक युगल सन्तान को जन्म दिया । उनका नाम नाभि और मरुदेवी रक्खा । नाभि सवा पांचसौ धनुष ऊंचे थे। इनकी सुवर्ण जैसी काति थी । मरुदेवी का वर्ण प्रियंगुलता की तरह श्याम था । माता-पिता की मृत्यु के बाद नाभि कुलकर बने । मरुदेवी नाभि कुलकर की पत्नी वनी । पिता की तरह इन्होंने हाकार, माकार और धिक्कार नीतियों से युगलियों पर अनुशासन किया ।