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तीर्थकर चरित्र करनेवाले कुलकरों का जन्म होता है। जैन शास्त्रों में ७,१९, अथवा १५ कुलकरों के नाम मिलते है । जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति में उनके नाम इस प्रकार हैं-१ सुमति, २ प्रतिश्रुति, ३ सीमकर, ४ सीमंधर, ५ क्षेमंकर, ६ क्षेमंघर. ७ विमलवाहन, ८ चक्षुष्मान् , ९ यशस्वी, १० अभिचन्द्र, ११ चन्द्राभ, १२ प्रसेनजित, १३ मरुदेव, १४ नाभि, १५ ऋपभ ।
समवायाग और आवश्यक नियुक्ति में सात कुलकरों के नाम आते हैं।
१ विमलवाहन, २ चक्षुष्मान्, ३ यशस्वी, ४ अभिचन्द्र, ५ प्रश्रेणी, ६ मरुदेव, और ७ नामि । ये सात कुलकर मनु भी कहलाते हैं।
उस समय दस प्रकार के कल्पवृक्ष कालदोष के कारण कम हो गये। यह देखकर युगलिए अपने अपने वृक्षों पर ममत्व करने लगे। यदि कोई युगलिया दूसरे के कल्पवृक्ष से फल ले लेता तो झगड़ा खड़ा हो जाता । इस तरह- कई जगह झगड़े खड़े होने पर युगलियों ने - सोचा कोई पुरुष ऐसा होना चाहिए जो सब के कल्पवृक्षों की मर्यादा वाध दे । वे किसी ऐसे व्यक्ति को खोज ही रहे थे कि उनमें से एक युगल स्त्री-पुरुष को वन के सफेद व चार दांत वाले हाथी ने अपने आप सूंड से उठाकर अपने ऊपर बैठा लिया । दूसरे युगलियों ने समझा यही व्यक्ति हम लोगों में श्रेष्ठ है और न्याय करने लायक है । सबने उसको राजा मान लिया। उसका नाम विमलवाहन रक्खा। विमलवाहन की पत्नी का नाम चन्द्रयशा था। विमलवाहन के द्वारा बनाई गई मर्यादा का सव युगलिये पालन करने लगे । इसने हाकार नीति का प्रचलन किया । 'हाँ' तुमने यह क्या किया ? इतना कहना ही उस समय के अपराधी के लिए प्राणदण्ड के वराबर था । इस शब्द के कहने मात्र से ही अपराधी भविष्य के लिये अपराध करना छोड़ देता था।