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बर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
वक्तव्य या पत्र लेकर चला जावे किन्तु यह ख्याल कर लेना कि 'वर्णीजी बहुत भोले हैं, बड़े सीधे हैं, इसलिए मैंने उन्हें ठग लिया' विल्कुल भ्रमपूर्ण ख्याल है ।
यथार्थ स्थिति, वर्तमान वातावरण, समयकी उपयुक्तता एवं भविष्यको सम्भावनाअोंको मद्दे नजर रखते हुए, सही सूचनाओं के आधार पर जब भी कभी वर्णाजी कोई व्यवस्था देते हैं तब वह पूर्ण उपयुक्त तो होती ही है सर्वमान्य भी हो जाती है। यही कारण है कि दलबन्दीमें पड़े लोग ( सुधारक स्थिति पालक और मुखिया शाही वाले ) उन सब मसलोंका मुकम्मिल फैसला हमारे वर्णीजी से करानेको राजी नहीं होते हैं; जिनके कारण जैन समाजमें फूटका साम्राज्य छाया हुआ है क्योंकि उन्हें भय बना रहता है कि कहीं वर्णीजीकी व्यवस्थाके विरुद्ध हमारा प्रचार निरर्थक न हो जाय ! ऐसे प्रसंगों पर अच्छी तरह समझने वाले विद्वान वर्णीजीको भोले-भाले सीधे-साधे, सच्चे धार्मिक, आदि, खिताबात देकर विषय टाल देते हैं। लोग अपने स्वार्थसे वर्णीजीके नामका उपयोग कर लेते हैं पर उनकी पूरी सम्मतिको कभी नहीं मानते हैं। वर्णीजीके अपूर्व-प्रभावको सब ही महसूस करते हैं । उनके विरुद्ध सफल आवाज उठाना टेढ़ी खीर है; यह भी मानते हैं फिर क्यों उनका पूरा लाभ नहीं उठाया जाता है ? क्यों उनके आदेश नहीं माने जाते ? उत्तर है, जैन समाज संसारका छोटा रूप है, उसमें भी सव शक्तियां और कमियां हैं । इसीलिए तब बहुत बेचैनी होती है जब हम यह सोचते हैं कि पूज्य वर्णीजी अब काफी वृद्ध हो चुके हैं उनके शरीरमें शिथिलता आ रही है, वे हमारा साथ कब तक दे सकेंगे। इनके बाद भी क्या हमारे बीच में कोई ऐसा प्रभावक नेता है जिसके भाग्यमें ऐसी सर्वमान्यता पड़ी हो । श्री जिनेन्द्र के स्मरण पूर्वक प्रार्थना है कि हम सैकड़ों वर्षों तक पूज्य वर्णीजीका सहयोग प्राप्त कर सकें। सिवनी]
(श्रीमन्त सेठ) विरधीचन्द
वर्णीजी केवल जैन समाजकी विभूति नहीं, वे समस्त मनुष्य व जीवमात्रके लिए हैं। मैं जयसे उनको जानता हूं तभीसे आज तक मैंने उन्हें आदर्श, सच्चे व निर्मल विद्यार्थी के रूप में पाया है। वे सदैव इस खोजमें लगे रहे कि जीव मात्र व विशेषतः मनुष्य मात्रका सुख किस मार्गमें है व उसी मार्गको उज्वल व प्रकाशमान बनाने का प्रयास हमेशा करते रहे हैं।
यह तो किसीसे छिपा नहीं कि वे सरलताके सागर हैं आदर्श मनुष्य जीवनके उदाहरण हैं । द्रव्योपार्जनके लिए ही मनुष्य बुद्धि उपार्जनमें लगा रहता है, जीवन भर धन के पीछे दौड़ता है, मार्ग भूल जाता है, धन भी छल कपटसे उसके आगे आगे भागता है । पर इस धनने वर्णीजीसे तो हार
छत्तीस