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तत्त्वार्थसूने श्रेणिः-१एकतो वक्रा-२ द्विधा वक्रा-३एकतः खा-४ द्विधा खा–५चक्रवाला-६ अर्द्धचक्रवाला-७, ऋज्वायतया श्रेण्या-उत्पद्यमानः एकमयेन विग्रहेण उत्पद्यते ।
एकवक्रया श्रेण्या उत्पद्यमानो द्विसामयिकेन विग्रहेण उत्पद्यते । द्विवक्रया श्रेण्या उत्पद्यमानस्त्रिसामयिकेन विग्रहेण उत्पद्यते, तदेतेनाऽर्थेन गौतम-! एवमुच्यते इति ।
अत्र विग्रहशब्दस्य अवच्छेदार्थकतया विरामार्थे पर्यवसानं भवति न तु-वक्रतार्थः । तथा चएकसमयेन वाऽवच्छेदेन गतेविरामेण, एकसमयपरिमाणगतिकालोत्तरभाविनाऽवच्छेदेन विरामेण उत्पद्येत तत्रापि-वक्रया श्रेण्योत्पद्यमानः समयद्वयपरिमाणगतिकालोत्तरभाविनाऽवच्छेदेन उत्पद्येत ।
यद्यप्यत्र ---- गतिमाणसूत्रे त्रिवत्रापि गति!क्ता, तथापि-अर्थतस्तत्प्रस्ताव एवोपरिष्टादभिहिता । तथाहि अपज्जत्तमुहुमपुढवीकाइएणं भंते-! अहोलोगखेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेते समोहए समोहित्ता जे भविए उइढलोगखेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तमुहमपुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते-! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा-गोयमातिसमइएणं वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा-'' इति ।
__ अपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिको भदन्त-! अधोलोकक्षेत्रनाड्या बहिःक्षेत्रे समवहतः समवहत्य यो भव्यः ऊर्ध्वलोकक्षेत्रनाड्या बहिःक्षेत्रे अपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकाइकतयोत्पत्तुं स खलु भदन्त-! कतिसामयिकेन विग्रहेण उत्पद्येत- गौतम-! त्रिसामयिकेन वा-चतुःसामयिकेन वा-विग्रहेण उत्पद्येत इति । एवञ्च–त्रिवक्रायामेव गतौ चत्वारः समयाः संभवन्ति अतो न दोषः। एवं चक्रवालादयोऽपि एतास्वेव चतसृषु गतिषु अन्तर्भवन्ति तस्मात्पार्थक्येन नोक्ताः । जीव उत्पन्न होता है । इस प्रकार वक्र श्रेणी से उत्पन्न होता हुआ जीव दो समय परिमाणवाली गति के पश्चात् होने वाले विराम से उत्पन्न होता है।
यद्यपि गति का परिमाण बतलाने वाले सूत्र में त्रिवका गति का कथन नहीं किया है, फिर भी अर्धतः उसका कथन ऊपर हो ही गया है । जैसे----
प्रश्न-भगवन् ? अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक-क्षेत्र की नाली से बाहर के क्षेत्र से ऊर्ध्वलोक के क्षेत्र की नाली से बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के रूप में उत्पन्न होने वाला है, वह कितने समय के विग्रह से उत्पन्न होता है ?
उत्तर गौतम ! तीन या चार समय के विग्रह से उत्पन्न होता है।
इस प्रकार त्रिवक्रा गति में ही चार समय हो सकते हैं, अतएव कोई दोष नहीं है । इसी प्रकार चक्रबाला आदि भी इन्हीं चार समयों में अन्तर्गत हो जाती हैं, इसी कारण उनका अलग कथन नहीं किया गया है ।
इस प्रकार ऋजु आदि चार प्रकारको गतियाँ चार समयपर्यन्त ही होतीहैं। कोई भी गति ऐसी
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧