Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ० २ सू. २०
पुद्गलानां परिणामनिरूपणम् २६५ मापेक्षिकमुच्यते । अपेक्षा तावत्-प्रतीत्य बुद्धिरुच्यते, यथा-द्यणुकस्कन्धः त्र्यणुकस्कन्धाद्यपेक्षया सूक्ष्मो भवति, एवं चतुरणुकादीन् प्रतीत्य-अपेक्ष्यत्र्यणुकस्कन्धः सूक्ष्मो भवतीति रीत्या-आपेक्षिकं सूक्ष्मत्वं बहुविध बोध्यम् । द्विविधं चैतत् सूक्ष्मत्वपौद्गलिकमुच्यते, यथाऽऽमलकापेक्षया बदरं सूक्ष्मं भवति एवं-स्थूलत्वमपि पूर्वोक्तं द्विविधमवगन्तव्यम्, अन्त्यम् आपेक्षिकञ्चेति । तत्राऽन्त्यं स्थूलत्वं सर्वलोकव्यापिनि अचित्तमहास्कन्धे अथवोत्कृष्टप्रदेशिके द्रष्टव्यम् ।।
स्थूलत्वं तावत्-परमाणुप्रचयपरिणामरूपम्-अवयवविकासरूपं वा विवक्षितम् । आपेक्षिकं स्थूलत्वं बदरापेक्षया-ऽऽमलके, आमलकापेक्षया दाडिमे वाऽवगन्तव्यम् । द्विविधमप्येतत्स्थूलत्वं पौद्गलिकपरिणाममवसेयम् । एवं संस्थानं खलु अवयवसन्निवेशरूपं रचनारूपम् आकृतिविशेषरूपं द्रष्टव्यम् । तद्विविधम्, जीवाजीवपरिग्रहात् । तत्र जीवाः-पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकाया एकेन्द्रियाः द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाश्च,
एतेषाञ्च जीवानां क्रमेण मसूरस्तिबुकसूचीकलापपताकाऽनित्थंस्थत्वसंस्थानाने पृथिव्यप्तेजो वायुप्रभृतीनां पौद्गलिकानि शरीराणि भवन्तीति बोध्यम् । तत्रापि-विकलेन्द्रियाणां त्रयाणामपि-द्वित्रिचतुरिन्द्रियाणां हुंडकं संस्थानं भवति । पञ्चेन्द्रियाणां पुनः ष इविधः शरीरसन्निवेशो यथायोग्य नामकर्मोदयनिष्पन्नः समचतुरस्र-न्यग्रोध-सादि-कुब्ज-वामन-हुण्डलक्षणो बोध्यः उक्तञ्चजो सूक्ष्मत्व अन्तिम हो, वह अन्त्य कहलाता है । अन्त्य सूक्ष्मत्व परमाणु में ही पाया जाता है, क्योंकि परमाणु ही सब से अधिक सूक्ष्म है, उससे अधिक सूक्ष्मत्व किसी अन्य वस्तु में नहीं होता । जो सूक्ष्मत्व किसी दूसरी वस्तु की अपेक्षा से माना जाता है वह आपेक्षिक कहलाता है । जैसे द्यणुक स्कन्ध त्र्यणुक स्कन्ध की अपेक्षा सूक्ष्म है, त्र्यणुक चतुरणुक की अपेक्षा सूक्ष्म है । इस प्रकार आपेक्षिक सूक्ष्मत्व अनेक प्रकार का होता है । यह दोनों ही प्रकार का सूक्ष्मत्व पौद्गलिक ही है ।
स्थूलत्व भी इसी प्रकार दो तरह का है-अन्त्य और आपेक्षिक । अन्त्य स्थूलत्व सर्वलोकव्यापी अचित्त महास्कन्ध में पाया जाता है, क्योंकि उससे अधिक स्थूल अन्य कोई पुद्गल नहीं होता । आपेक्षिक स्थूलत्व बेर की अपेक्षा आमले में, और आमले की अपेक्षा दाडिम में होता है । परमाणुओं के प्रचय परिणाम को अथवा अवयवों के विकास को स्थूलत्व कहते हैं । यह दोनों प्रकार का स्थूलत्व पौद्गलिक है।
संस्थान का अर्थ आकृति है। आकृति अवयवों की अमुक प्रकार की रचना से बनती है । संस्थान दो प्रकार के हैं-जीव का और अजीव का । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, ये एकेन्द्रिय जीव हैं और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीव अनेकेन्द्रिय है । इन पृथ्वी अप् तेजस्काय आदि जीवों के शरीर का संस्थान क्रम से मसूर के समान, स्तिबुक के समान, सूचीकलाप के समान, पताका के समान और अनित्थंस्थ होता है । इनमें जो द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय नामक तीन विकलेन्द्रिय
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧